जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
मैंने उन्हें रोकते हुए कहा, “अच्छा, एक काम किया जाए तो कैसा रहे? तमाम धार्मिक स्कूल बंद कर दें, सिर्फ पब्लिक स्कूल ही रखें।"
उन्होंने मेरी यह बात बिल्कुल ही नहीं मानी।
वे कैथलिक स्कल की तारीफ में जट गए. "धार्मिक स्कलों में धर्म सिखाया जाता है, लेकिन कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं है कि उसे धार्मिक होना ही होगा। बहुतेरे लोग इस किस्म के स्कूल चाहते हैं।"
चूँकि कैथोलिक स्कूल बहाल तबीयत से फल-फूल रहे थे, इसलिए शहर के पाँच मिलियन मुसलमानों के लिए अब मुस्लिम स्कूल की जरूरत आ पड़ी है। वहाँ जो लड़कियाँ बुरका पहनना चाहें, पहन सकती हैं। पब्लिक स्कूलों में बुरका और अन्य धार्मिक चिह्न वर्जित है। वैसे मैं इस किस्म के तर्क की पक्षपाती नहीं हूँ। मेरी तो साफ बात है कि फ्रांस के धार्मिक स्कल धर्म को ही प्रधान पाठयक्रम नहीं बनाते हैं, इसलिए धार्मिक स्कूल तैयार करने को प्रोत्साहित करना होगा, यह कैसी बात? इस युग में धार्मिक स्कूलों को जिलाए रखने में कोई तुक नहीं है और यह क्षुद्र समस्या मिटाने के लिए ईसाई स्कूल, मुस्लिम स्कूल वगैरह बनवाकर किसी समस्या का सच्चा समाधान नहीं होने वाला! बल्कि यह तो इंसान-इंसान में भेद रचता है और बाद में और बड़ी समस्या बनकर गर्दन पर सवार हो जाती है।
शिराक साहब ने कहा, "बुरका पहनने वाली लड़कियों से जरा बात करके देखें न। वे लोग बुरका क्यों पहनती हैं, ज़रा पूछकर देखें। उन लोगों को थोडी-बहत सलाह भी दें। मेरा खयाल है, वे लोग अपने बाप-भाई के दबाव में आकर बरका पहनती हैं। यहाँ कम उम्र छोकरे ही कट्टरवादी हैं।"
मैंने वादा किया कि पर्दानशीन मुसलमान लड़कियों-औरतों से मैं बात करूँगी।
वांग्ला और फ्रेंच भाषा में मुस्लिम लोगों को मुसलमान कहा जाता है! फ्रेंच और बांग्ला का यह मेल मुझे पल-भर के लिए विस्मय में डाल गया।
जैक शिराक ने मुझे एक वेशकीमती उपहार दिया। उन्होंने मुझे वाल्टेयर की धर्म-संबंधी पाँच किताबें भेंट की। सन् सत्रह सौ के शुरू में प्रकाशित किताबों का यह पहला संस्करण था। रेक्सिन की जिल्ददार छोटी-छोटी किताबें! ये किताबें स्विट्जरलैंड से प्रकाशित हुई थीं। उन दिनों वाल्टेयर अपने देश फ्रांस से निर्वासित थे।
एक निर्वासित मानववादी, नास्तिक लेखक का ग्रंथ अन्य निर्वासित मानववादी नास्तिक को उपहार देकर मैं अपने को धन्य मानता हूँ।" शिराक साहब ने कहा।
मुझे विदा करने के लिए वे नीचे गाड़ी तक आए। हम दोनों में क्या बातचीत हुई। यह जानने के लिए पत्रकारों ने हमें घेर लिया। मैंने कोई मंतव्य जाहिर नहीं किया। मेरे चले आने के बाद पत्रकारों ने शिराक साहव को घेर लिया। वे लोग यह जानकारी चाहते थे कि मुझस उनकी क्या बातचीत हुई।
गाड़ी में मेरे साथ क्रिश्चन बेस भी थी। हम दोनों फ्रांस में कट्टरवाद की समस्या के बारे में शिराक के समाधान पर काफ़ी देर हँसते रहे।
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