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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


टेलीविजन सेंटर में बेनार्ड पीभो ने मझसे मिलने को कहा था। मैंने अति मामूली-सा सौजन्य दिखाया। वेर्नार्ड पीभो ने अपने कार्यक्रम में क्या किया था, कैसे प्रस्तुत किया था? यह तो मैंने बाद में देखा और समझा। उनके असाधारण प्रतिवाद की भाषा क्या थी? वही खाली कुर्सी!

जैक शिराक पैरिस के मेयर हैं। कभी यहाँ के प्रधानमंत्री थे। आगामी चुनाव में वे प्रेसीडेंट उम्मीदवार होंगे। उन्होंने मुझसे मिलना चाहा है इसलिए मुझे उनसे भेंट करने जाना होगा। मेरे जाने का मतलब ही है एक किस्म का सर्कस! घंटे भर पहले से ही रास्ते बंद कर दिए गए। हॉर्न बजाते हुए गाड़ियों का जुलूस शुरू हो गया। शिराक साहब होटल द विल (टाउन हॉल या सिटी हॉल, पीरसभा को फ्रेंच भाषा में होटल द विल कहते हैं) में रेड कार्पेट बिछी हुई सीढ़ी की छोर पर खड़े थे। गाड़ी से नीचे उतरते ही, उन्होंने आगे बढ़कर, मेरे गालों का चुंबन लिया और मुझे ऊपर लिवा ले गए। बैठते ही उन्होंने आँखों से जाने क्या तो इशारा किया। अगले ही पल कैमराधारी रोबोट की तरह रस्सी के उस पार लाइन से खड़े हो गए और क्लिक-क्लिक करके शटर दबाने लगे। चारों तरफ रोशनी की चकाचौंध फैल गई। पाँच मिनट तक तस्वीरें लेने का दौर चला। पाँच मिनट बाद सारे कैमरे विदा हो गए। उन लोगों के विदा होने के बाद दुभाषिये को साथ लेकर उन्होंने मुझसे बातचीत की, लेकिन अंत तक उन्होंने दुभाषिये के मारफत ही बातचीत जारी नहीं
वे खुद ही धीरे-धीरे भारी-भरकम फ्रेंच उच्चारण में, अंग्रेजी में बातचीत करने लगे। हम दोनों में बातचीत का दौर शुरू हो गया। मूल रूप से मुस्लिम समस्या पर बातें होती रहीं। हाय गजव! फ्रांस की सरकार द्वारा मुस्लिम कट्टरवाद की समस्या कैसे दूर की जाए, इस बारे में उन्होंने मेरी सलाह माँगी। मेरे लिए हँस पड़ने के अलावा और कुछ नहीं था।

मैंने हँसते-हँसते ही जवाब दिया, “यह मैं कैसे बता सकती हूँ? यह आपलोगों का देश है, आप लोग ही इसका समाधान करें! मैं ठहरी मामूली लेखिका! इस समस्या का समाधान भला मैं कैसे कर सकती हूँ? मुझे उम्मीद है कि फ्रांस सरकार ही इसके समाधान के लिए काफी समर्थ है।"

शिराक ने सिर हिलाकर कहा, "पैरिस शहर में उग्रपंधी लोग एक समस्या बन गए हैं। मस्जिदों के सारे इमाम बुरे हैं, ऐसी बात नहीं है। कई इमाम भले भी हैं। मैं चाहता हूँ, शहर में अलग से एक मुस्लिम स्कूल खुलवा दूँ! आप ही इमाम लोगों से बात कर लें न!"

“देखिए, इमाम लोग अक्सर कट्टरवादी होते हैं!"

यह सुनकर उन्होंने बीच में ही प्रतिवाद किया, "विल्कुल भी नहीं! ये लोग वेहद आधुनिक हैं।"

मुसलमानों के अल्पसंख्यक होने की असुरक्षा दूर करने के लिए ही वे मुसलमानों के लिए अलग से स्कूल बनवाना चाहते हैं।

मैंने कहा, “क्यों? अलग स्कूल क्यों? अलग स्कूल बनाकर उन लोगों को और ज्यादा अलग कर दिया जाएगा। वे लोग फ्रांसीसी समाज की मूल धारा में और ज्यादा नहीं मिल पाएँगे। उन लोगों में अलग मानसिकता पलने लगेगी। वे लोग और ज्यादा मुसलमान बनेंगे। और ज्यादा कट्टरवादी बनेंगे। यह बात उन लोगों के लिए भी भली नहीं होगी और इस फ्रांस देश के लिए भी भला नहीं होगा। इस सेकुलर राष्ट्र में तमाम स्कूल भी सेकुलर ही होने चाहिए।"

शिराक और कुछ भी कहना चाहते थे।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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