जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
मेरी वगल में रिपार्ट्स सां फ्रेंन्टियर्स के रोवर्ट मिनई, फन्याक के बड़े-बड़े अधिकारी, नोवेल ऑब्जर्वेतर के सम्पादक, जॅ दानियाल, एडीशन स्टॉक की क्रिश्चन वेस और मनिक नेमर आसीन! पत्रकारों की भीड़ में एक पहचाना हुआ चेहरा भी है-जिल का चेहरा! जिल पर मेरी निगाह पड़ी। वह दरवाजे पर खड़ा-खड़ा मेरी ओर देखते हुए मंद-मंद मुस्करा रहा था। जिल को देखकर मैं खुश हो गई। मैं भी उसकी तरफ देखते हुए मुस्करा दी। कॉन्फ्रेंस भूलकर मैं आँखों के इशारे में और होंठ हिला-हिलाकर उससे बातें करती रही।
विराट आयोजन! अपनी आँखों से देखे विना विश्वास न आए। दर्शकों की भीड़ मानो पुल पर टूटी पड़ रही थी। बुजुर्ग लोग लाइन से मेरे गाल से गाल सटाकर चुंबन लेते हुए! पत्रकारों के सवालों का कोई अंत नहीं था। उनके सवाल कुछ मेरे पल्ल पड़े, कुछ नहीं पड़े। मेरे जवाब भी उन लोगों ने कुछ समझे, कुछ नहीं समझे।
किसी ने मुझसे सवाल किया, “तसलीमा, आप अपने को किस रूप में देखती हैं? लेखिका के रूप में या नारीवादी के रूप में? या वाक् स्वाधीनता के पक्षधर के प्रतीक के रूप में?"
मैंने उदास-सी मुस्कान बिखेरते हुए जवाव दिया, “एक मामूली इंसान के रूप में।"
लेकिन मामूली इंसान के तौर पर क्या समझने दिया जाता है? मेरे चारों तरफ, आक्षरिक अर्थ में सैकड़ों-सैकड़ों पुलिस! बंदरगाह में चारों तरफ बम सूंघते हुए खोजी कुत्तों के साथ घूमती हुई पुलिस! मुझे झटपट वहाँ से निकालकर गाड़ी में बिठाया गया, साथ में क्रिश्चन वेस! सचमुच ऊँची औकात वाली, उच्च-रुचि की फ्रांसीसी मादाम! पुलिस की भारी-भरकम गाड़ियों की कतारें! मेरी गाड़ी के सामने ढेरों मोटर-साइकिल! उसके पीछे पुलिस की छह-छह काली गाड़ियाँ! मेरे पीछे भी इसी किस्म की छह पुलिस गाड़ियाँ ! सबसे पीछे पत्रकारों की गाड़ियाँ ! वहाँ फ्रेडरिक लेफ्रंय, आर्ते टेलीविजन की तरफ से मेरे फ्रांस-भ्रमण के बारे में, क से लेकर चंद्रबिंदु तक टेपवंद करने में जुटे हुए।
यह पूरी बारात हवाई अड्डे से निकलकर सबको पीछे छोड़ते कुचलते-छीलते, पों-पों हॉर्न बजाते हुए, सबसे आगे-आगे आग की तरह हहराकर दौड़ती हुई पैरिस शहर के बीचोंबीच स्थित फ्रांस के सबसे महँगे और मशहूर होटल रित्ज के सामने जा खड़ी हुई। होटल के अंदर दाखिल होते हुए सामने झूलते हुए भारी-भरकम और शानदार आतिशदान की झाड़ देखकर मेरा तो सिर घूम गया। ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में आ गई। चारों तरफ झकझक जगमगाहट। मुझे जिस कमरे में ले जाया गया वह इस होटल का सबसे गोपन कमरा था। सूराखहीन सुरक्षित कमरा! इस कमरे के आस-पास वाले दो कमरे भी बुक कर लिए गए थे। एक कमरा मेरे सुरक्षा कर्मियों के लिए, दूसरा मिलने आने वालों से मेरी मीटिंग के लिए। मेरे वेडरूम में फूलों के विशाल गुलदस्ते! जाने कितने लोगों और संगठनों ने मुझे अभिनंदन ज्ञापित किया था। मैं कहाँ हूँ, यह आम लोगों की जानकारी से बाहर था। ये अभिनंदन, असाधारण लोगों की तरफ से आए हैं। मुझसे मिलने के लिए, जान-पहचान वालों की भी भीड़ लग गई। पुलिस ने सबको यही कहकर वापस कर दिया कि तसलीमा इस होटल में नहीं है या फिर भेंट नहीं होगी।
मेरे बदन पर शर्ट-पैंट-कोट। ये कपड़े देश में ही वनवाए गए थे। कोट छोटू दा का है। शट-पट ढाका क वग वाजार से खरादा हुआ। सारे कपड़े वटव! इन वेढव कपड़ों के अलावा मेरे पास पहनने को और कुछ नहीं है। कुछेक साड़ियाँ भी हैं। मेरी पश्चिमी पोशाकं, पश्चिम में किसी की भी पसंद की नहीं हैं। सभी कहते हैं- “साड़ी पहनो! साड़ी पहनो ! साड़ी में तुम ज्यादा जंचती हो।' क्रिश्चन तो साड़ी की प्रशंसा में पंचमुख रहती है। क्रिश्चन ने मेरे हाथों में एक लंवा-सा स्कैजुअल थमा दिया। फोन पर अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने के आग्रह का तो ताँता लगा हुआ है। मादाम बेस ने सारे आग्रह खारिज कर दिए, “चलो चलो, तैयार हो जाओ।" दिन-भर यह कार्यक्रम, वह कार्यक्रम! टेलीविजन का कार्यक्रम! लाइव! फ्रांस का सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कार्यक्रम! प्रोड्यूसर कैवाडा! टीवी सेंटर पहुँचते ही कैमरों की दौड़ शुरू हो गई। अँ कैवाडा, मेरी अगवानी के लिए खुद नीचे उतर आए। वेर्नार्ड पीभी भी मुझसे मिलने आए। मुझे बेहद नींद आने लगी और कसकर भूख भी लग आई। मैंने अति मामूली-सा सौजन्य विनिमय किया। तब तक मुझे यह देखने या समझने का मौका नहीं मिला था कि बेर्नार्ड पीभी ने कैसा कार्यक्रम किया था। उनके असाधारण प्रतिवाद की भापा कैसी थी? वह खाली कुर्सीवाला कार्यक्रम!
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