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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


इंसान के साथ इंसान का रिश्ता बेहद ठंडा है। इस सच्चाई से इस देश के लोग भी इंकार नहीं करते। चूँकि वे लोग रिश्तों के ठंडेपन से इंकार नहीं करते, इसलिए चारों तरफ से इसे उष्ण बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। कंपनी की तरफ से अपने कर्मचारियों को कहीं दूर ले जाया जाता है और उन लोगों को हिदायत दी जाती है कि तुम लोग कुछ काम मिल-जुलकर करो, नौका चलाओ, पहाड़ पर चढ़ो, साइकिल दौड़ाओ। काम की या दफ्तर की बातों से परे, सामाजिक वातचीत या विल्कुल व्यक्तिगत वातचीत के लिए ही यह आयोजन किया जाता है। चरम असामाजिक लोगों को अचानक सामाजिक वनाने पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन क्या जोर-जबरदस्ती सब कुछ किया जा सकता है, अगर इंसान वचपन से ही ऐसे परिवेश में ही पला-बढ़ा न हो?

फ्रांस जाने के लिए खत आया है। टेलीविजन पर बेर्नार्ड पीभी का कार्यक्रम है। पीभो फ्रेंच टेलीविजन में साहित्य-संबंधी वेहद ऊँचे स्तर का कार्यक्रम आयोजित करते हैं। वे साहित्यकारों को आमंत्रित करते हैं और उनकी किताबों पर चर्चा करते हैं। यह कार्यक्रम विशुद्ध बुद्धिजीवियों के लिए आयोजित किया जाता है। वर्तमान फ्रेंच साहित्य संस्कृति-जगत में पीभो ईश्वर जैसे हैं। पीभो का आमंत्रण पाकर यथारीति जो करना चाहिए, मैंने कर डाला। फ्रेंच दूतावास में जाकर मैंने वीसा के लिए आवेदन कर दिया। वीसा प्राप्त करना आसन बात नहीं है। दूतावास की तरफ से फ्रांस को सूचना भेज दी गई। सरकारी अनुमोदन प्राप्त होने के बाद ही वीसा जारी किया जाएगा। राष्ट्रदूत महोदय ने मुझे पहचान लिया और काफी खातिर-तवाजो की। अपने कमरे में बिठाकर उन्होंने हँस-हँसकर बातें कीं और वेहद मीठे लहजे में बताया कि वीसा तैयार होते ही वे फोन पर मुझे सूचित कर देंगे। तब मैं किसी को भेजकर वीसा मँगवा लूँ।

हाँ, इसके बाद दूतावास से फोन भी आ गया। मुझे बताया गया कि मुझे 24 घंटे के लिए वीसा दिया जा रहा है। मैंने सात दिनों के वीसा की माँग की थी और मुझे दिया जा रहा है, कुल 24 घंटों का वीसा? इसका क्या मतलब है? यह तो देना-न देना बराबर है। मैं किसी देश में जाऊँगी, वहाँ मेरे प्रकाशक हैं, यार-दोस्त हैं। सबसे भेंट-मुलाकात करूँगी। 24 घंटे के वीसा के दम पर क्या इतना कुछ संभव है? 24 घंटे के बाद मैं उस देश में निषिद्ध हो जाऊँगी? मैं बुरी बुरह झुंझला उठी। मैं यह वीसा लेकर क्या करूँगी? राष्ट्रदूत के पास मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था। मैं पीभो के कार्यक्रम में जा रही हूँ, यह खबर फ्रांस के प्रचार-माध्यमों से प्रचारित हो चुकी थी। सुनने में आया कि वहाँ के टेलीविजन पर प्रतिदिन यह विज्ञापन दिखाया जा रहा है। पीभो के कार्यक्रम में मेरे अलावा कई अन्य साहित्यकारों के शामिल होने की जानकारी मिली। उनमें नारीवादी साहित्यकार एन्तोयानेत फुक भी थीं। फुक ने बिल्कल अभिनव आग्रह किया है। फक की शिष्या मिशेल ईदेल फोन और फैक्स पर मुझसे लगातार आग्रह करती रही कि उस कार्यक्रम में फुक भी जा रही हैं। मैं पीभो से कहूँ कि कार्यक्रम में फुक को मेरी बगल की सीट दी जाए। अगर मैं कहूँ तो पीभो राजी हो जाएँगे। सन् साठ के दशक के नारीवादी आंदोलन की खासी मशहूर नेत्री हैं, जनाव एन्तोयानेत फुक! उन्होंने खुद भी नारी अधिकार के विभिन्न विषयों पर किताबें लिखी हैं। उनकी खुद की भी एक नारी ग्रंथ प्रकाशन संस्था है। जैक दारीदा जैसे दार्शनिक भी फुक के भक्त हैं। वे खुद भी मितरों के दल में शामिल
हैं और यूरोपीय यूनियन की संसद सदस्या हैं। उन्होंने मेरी बगल की सीट पाने के लिए मुझसे लगभग विनती की है। आखिर क्यों? क्या वजह है? क्या इसलिए कि मैं उस कार्यक्रम में प्रधान अतिथि हूँ या प्रधान आकर्पण, इसलिए मेरी बगल में बैठेंगी तो उन्हें ज्यादा अहमियत मिलेगी? वरना और क्या वजह हो सकती है? मुझे यह भरोसा करने में तकलीफ हुई कि उस इंसान में अहमियत पाने और अपनी कद्र दिखाने का कैसा निर्लज्ज लोभ है। वह भी ऐसी हस्ती, जिसे में प्रणाम करती हूँ! मैंने वेर्नार्ड पीभो को कुछ नहीं लिखा, बल्कि मेरा मन घोर वितृष्णा से भर उठा। धत्तेर की! मैं फ्रांस जाऊँगी ही नहीं! इंसान में ऐसा टुच्चापन नहीं होना चाहिए। अच्छा नहीं लगता! वीसा जुटाओ, सूटकेस तैयार करो, हवाई अड्डे पहुँचो, हवाई जहाज पर चढ़ो, उठ-बैठ करो, दूर-दूरांतर के शहर के सफर पर जाओ, वहाँ होटल में रुको, आराम करो, टेलीविजन जाओ, कार्यक्रम करो, कार्यक्रम खत्म होने पर होटल लौटो, सूटकेस समेटो, हवाई अड्डे की तरफ दौड़ा और चले जाओ! फूटो यहाँ से। यह क्या इंसान के प्रति इंसान जैसा बर्ताव है? तुम्हारा देश क्या मैं चीर-फाड़ डालूँगी या खा जाऊँगी? चलो, मैं जाऊँगी ही नहीं! मैंने क्रिश्चन वेस को भी सूचित कर दिया कि मैंने न जाने का फैसला किया है। क्रिश्चन ने भी मेरे इस अच्छे फैसले की तारीफ की।

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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