जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
अव कहाँ? ल्यूभर के कोने में नोबेल ऑब्जर्वेतर का रिसेप्शन ! वहाँ दो सौ लेखकों का जमावड़ा! 30 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशेषांक भी प्रकाशित हुआ है। हर मेज़ पर उस विशेषांक की प्रति सजाकर रखी हुई। नोवेल ऑब्जर्वेतर ने पिछली 29 अप्रैल का रोजनामचा भी प्रकाशित किया है। काफी विशाल आकार में छपा है। सभी लोगों के हाथों में शैम्पेन का गिलास! भीड़! विशाल भीड़! लेकिन मुझे कोई भीड़ छू भी नहीं सकती। मेरे चारों तरफ सादी पोशाकधारी हथियारवंद पुलिस! उनके कानों में गोलाकार तार हुँसे हुए जिसके सहारे वे लोग सुनते हैं। उन लोगों की घड़ी में माइक्रोफोन फिट है। शर्ट की आस्तीन तले भी माइक्रोफोन! खैर, खोजा जाए, तो सिर से पाँव तक बहुत कुछ मिल जाएगा, कुछ छाती में, कुछ पेट में, कुछ जूतों में, कुछ मोजों में! माइक्रो-माइक्रो यंत्र पूरे तन-बदन में बँधे हुए! उस ठसाठस भीड़ में अचानक पासकोवा! पत्रकार लगभग उन्हें खींचकर ले आए और उन्हें मेरी वगल में खड़ा कर दिया। पासकोवा और मैं! दोनों को एक साथ देखने के लिए हर आदमी उतावला हो उठा। सूरत-शक्ल से काफी कुछ अल्फ्रेड हिचकॉक जैसे उस शख्स ने मुझे 'वजू' संवोधन के साथ, फ्रांस में मेरे आगमन का स्वागत किया।
उन्होंने शुभकामनाएँ देते हुए कहा, “आपके दिन सुरक्षित गुजरें, निश्चित गुज़रें और राजी-खुशी गुज़रें!"
पत्रकारों को उम्मीद थी कि मैं शायद झगड़ा करूँगी। उन लोगों के कान खड़े हो गए। उन लोगों ने अपनी जेब में पड़ा यंत्र चालू कर लिया, लेकिन मैंने ईपत हँसकर उन्हें धन्यवाद भर दिया।
लिवरेशन के पत्रकार ने सवाल किया, "इतना सब होने के बाद भी तसलीमा आपके सामने है। इस वक्त आप क्या सोच रहे हैं?"
फ्रांस के गृहमंत्री पासकोवा ने जवाव दिया, “तसलीमा जितने दिनों कट्टरवादियों के खिलाफ है, उतने दिनों हम उसके साथ हैं। बस, इतना कहकर कुख्यात 24 घंटे के झमेले में न फँसना पड़े, इसलिए फटाफट कट लिए।
भीड़ को धकियाते हुए, लंबी दाढ़ी वाला एक मरगिल्ला-सा शख्स सामने आ खड़ा हुआ।
उन्होंने बेहद विनीत लहजे में कहा, "मेरा नाम एलेन गिन्सवर्ग है। मैं आप लोगों के देश गया था। मैंने लालन फकीर पर एक किताव लिखी है! यह देखें!" उन्होंने अपने झोले से एक किताव निकालकर दिखाई।
मैं उत्तेजित हो उठी, “आप एलेन गिन्सबर्ग हैं? आपकी ढेरों कविताएँ मैंने पढ़ी हैं। मुझे आपकी कविताएँ बहोत अच्छी लगती हैं। आपका 'जैसोर रोड' भी मैं पढ़ चुकी हूँ। मैं जानती हूँ, आपके बारे में बहुत सारी...।''
हम दोनों में बातचीत होने लगी, लेकिन ज्यादा देर तक नहीं चल पाई, "काफी हुआ, अव चलो।' तभी एक हिदायत सुनाई दी।
“कहा जाता है, तारिका को ज्यादा देर तक, कभी, कहीं नहीं रुकना चाहिए।" क्रिश्चन बेस ने मेरे कान में फसफसाकर कहा।
हुँः तारिका! कितना भला लगता, अगर एलेन गिन्सवर्ग से कुछ देर और बातें होतीं। काश बात करने के लिए उत्सुक उस फ्रेंच लेखक-कवि से बातें करने का थोड़ा समय और मिल पाता। अब तो कोई काम भी नहीं था। बहरहाल मुझे विलास-बहुल रित्ज़ होटल पहुँचकर वाथटब के गर्म पानी में लेटे रहना पड़ा। क्रिश्चन वंस मुझे कमरे तक छोड़कर चली गई।
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