जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
रास्ता बंद! आधे पैरिस शहर में कहीं कोई गाड़ी-सवारियाँ नहीं हैं। रास्ते में आम लोगों के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है। चारों तरफ लाल बत्तियाँ! चूंकि उन रास्तों से मेरी गाड़ी गुज़रने वाली है, इसलिए उन सड़कों पर गाड़ियों के आने-जाने पर रोक लगा दी गई है। जिन सड़कों से मेरी गाड़ी गुज़र रही है, वहाँ फुटपाथ पर खड़े लोग, हॉर्न बजाती गाड़ियों के काफिले को दर्शक बने देख रहे थे और अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मैं किस गाड़ी में हूँ। मुझे अपनी आँखों से देखने की क्षमता उनमें नहीं है। काला काँच! लेकिन मैं अंदर से उन सबको देख रही थी। वे लोग मुझे नहीं देख पा रहे थे! समूचा फ्रांस जानता है कि मैं उनके शहर में आई हूँ, इसलिए किसकी गाड़ियों का जुलूस आधे पैरिस को बंद रखकर, आगे बढ़ रहा है, यह तो सभी लोग जानते हैं। मैंने अपनी जिंदगी में इतना कुछ देखा है, लेकिन इस तरह किसी रास्ते से यूँ गाड़ी गुज़रते हुए कभी नहीं देखा। पुलिस वालों ने ही बताया कि परे बारह सौ पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। हाँ, मेरी सरक्षा के लिए बारह सौ पुलिसकर्मी चौबीसों घंटे काम कर रहे थे। मारे डर के मेरी साँस रुकने लगी है। पैरिस जैसे व्यस्त शहर में गाड़ी-सवारियों पर रोक लगा दी गई है। मैं उन्हीं सब रास्तों से आ-जा रही हूँ, मेरा सिर चकराने लगा। कहीं मेरे खिलाफ जनसाधारण का क्रोध न उबल पड़े। कहीं भी कोई उलट-पुलट होती है तो फ्रांसीसी लोग प्रतिवाद में उठ खड़े होते हैं। इस सरकारी अत्याचार के खिलाफ भी वे लोग ज़रूर विरोध करेंगे। उन लोगों के इस दुर्भोग के लिए कहीं सारा गुस्सा मुझ पर न बरस पड़े। वह सब करने का औचित्य क्या है? कानाफूसी में मैं यह भी सुन चुकी थी, कि पासकोवा मेरी सुरक्षा का ऐसा आयोजन करके यह साबित करना चाहते हैं कि मुझे पिछले बार 24 घंटों से ज्यादा का वीसा नहीं दिया गया। उसकी वजह यह है कि फ्रांस में मेरी जान को खतरा है, इसीलिए ऐसी सख्त सुरक्षा की ज़रूरत आ पड़ी है। ऐसा भयावह सुरक्षा आयोजन दिखाकर, गृहमंत्री खुद अपनी भूल मिटाना चाहते हैं।
मेरी गाड़ी अब फ्लाक की तरफ बढ़ रही थी। सड़क की हर नुक्कड़ पर पुलिस! पुलिस देखकर, लोग समझ जाते हैं कि मैं वहाँ से गुजरने वाली हूँ। जनता खड़ी रहती है। आगे छह गाड़ियाँ, पीछे छह गाड़ियाँ ! लोग वीच की गाड़ी पर नज़रें टिकाए, तालियाँ बजाते रहे। मैं गाड़ी के अंदर से सारा कुछ देखते हुए गूंगी बनी रही। फ्लाक, यूरोप की बहुत बड़ी सांस्कृतिक संस्था है। यूरोप के सात देशों में इसकी शाखाएँ विद्यमान हैं। इसका अपना प्रकाशन, कितावों की दुकान, लाइब्रेरी भी है और तरह-तरह के कायदे-कानून भी हैं! फ्लाक के मालिक-संचालक वगैरह सभी लोग लंच पर बैठे। इससे पहले मेरी साड़ी का आँचल भर देखते ही अंदर बैठे लोगों ने तालियाँ बजाईं। फ्लाक के संचालक ने सबसे मेरा परिचय कराया।
मुझे मुस्कराते हुए हाथ हिलाना पड़ा। उस लंच में रॉबर्ट भी आमंत्रित थे। मैं जिल को भी अपने साथ ले आई थी। ऐसे औपचारिक लंच में जिल ईषत् सकुचायी हुई थी। आयोजकों ने बार-बार यह बताया कि उनकी दुकानों में 'लज्जा' किताब काफी जोर-शोर से विक रही है। उन लोगों ने यह भी बताया कि काफी सारे पाठक इस अनुरोध के साथ अपनी-अपनी प्रतियाँ उनके यहाँ छोड़ गए हैं कि मुझसे उन पर दस्तखत करा लें। बहरहाल मुझे पिछले दरवाजे से नीचे उतर आना पड़ा। हर जगह यही होता है। सुरक्षा-व्यवस्था में सामने का दरवाज़ा नहीं होता। चारों तरफ वर्दी और सादे कपड़ों में पुलिस-ही-पुलिस! पंद्रह दिन पहले से ही मैं किस दरवाजे से कहाँ दाखिल होऊँगी, किस रास्ते से बाहर निकलूंगी, सारा नक्शा तैयार कर लिया गया था। टेलीविजन कैमरे लगातार पीछे-पीछे दौड़ते-भागते हुए! आगे-आगे फोटोग्राफर दौड़ते हुए। इसके अलावा फ्रेडरिक तो खैर था ही। दस दिनों के मेरे फ्रांस-सफर पर वह आर्ते के लिए एक डॉक्यूमेंटरी बना रहा है। बेर्नार्ड आँरी लेवी ने खत भेजकर अनुमति मांगी थी। 30 तारीख को आर्ते, घंटे-भर का, मेरा एक पोर्टेट तैयार करना चाहता है। फ्रेडरिक ने पहले ही दिन मुझे आश्वस्त कर दिया था कि वह मुझे तंग नहीं करेगा। वह मुझसे न कोई सवाल पूछेगा, न जवाब माँगेगा। सिर्फ मेरे संदर्भ में जो हो रहा है, वह बेआवाज़ कैमरा बंद करेगा।
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