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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


चेहरे पर उत्कंठा का भाव लिये सुधामय ने पूछा, 'और अपने 'नीलांजना दत्त' नाम का क्या करोगी?' तुरन्त उन्हें अपना 'सिराजुद्दीन' नाम याद आया। माया का कंठस्वर थोड़ा काँपा। फिर बोली, 'ला इलाहा इल्लाल्लाहु मुहम्मदुर रसुलुल्लाह' कहने पर कहते हैं कि मुसलमान बना जा सकता है। वही बनूँगी। नाम होगा, 'फिरोजा बेगम।'

'माया!' किरणमयी ने माया को रोकना चाहा।

माया ने गर्दन टेढ़ी करके किरणमयी को देखा। मानो वह गलत नहीं कर रही हो, यही स्वाभाविक है। सुधामय ने लम्बी साँस छोड़कर फटी-फटी नजरों से एक बार माया को, फिर किरणमयी को देखा। माया ने न तो सैंतालीस का देश-विभाजन देखा है, न पचास का दंगा और न इकहत्तर का मुक्ति-युद्ध। होश सम्भालने के बाद देखा है देश का राष्ट्रधर्म इस्लाम है, देखा है उसने और उसके परिवार ने कि अल्पसंख्यक सम्प्रदाय के व्यक्तियों को समाज के साथ अनेक तरह का समझौता करना पड़ता है। उसने नब्बे की भीषण आग देखी है। इसलिए अपनी जिन्दगी बचाने के लिए माया किसी भी चेलैंज का मुकाबला करने के लिए तैयार है। माया अन्धी आग में जलना नहीं चाहती। सुधामय की आँखों की शून्यता माया को निगल लेती है। उन्हीं के सामने वह कहती है कोई अब जरा भी रुक नहीं सकता। सुधामय के सीने में एक तीव्र वेदना धीरे-धीरे बढ़ती गयी।

सुरंजन की चाय की तलब नहीं मिटती। वह उठकर नल की तरफ जाता है। मुँह धोये बिना ही एक कप चाय पीने से अच्छा होता। माया की कोई आवाज नहीं आ रही। क्या वह लड़की चली गयी है? सुरंजन मंजन करता है, काफी समय तक मंजन करता रहा। घर में एक अजीब-सा, गम्भीर माहौल है, मानो अभी-अभी कोई मरने वाला है। अभी तुरन्त बिजली गिरने वाली है और सभी अपनी-अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सुरंजन चाय की तलब लिए हुए सुधामय के कमरे में आता है, बिस्तर में पैर चढ़ाकर आराम से बैठता है। माया कहाँ है? सुरंजन के सवाल का किसी ने जवाब नहीं दिया। किरणमयी खिड़की के सामने उदास बैठी हुई थी। वह कुछ न कहकर चुपचाप उठकर रसोई में चली गयी। सुधामय छज्जे की ओर भावविहीन दृष्टि से देख रहे थे, आँख मूंद कर करवट बदलकर लेट गये। सम्भवतः कोई उसे यह खबर देने की जरूरत महसूस नहीं कर रहा है। वह समझता है कि वह ठीक ढंग से अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है। उसे जो करना चाहिए था अर्थात् परिवार के सभी सदस्यों को लेकर कहीं भाग जाना चाहिए था, वह ऐसा नहीं कर पा रहा है। या फिर ऐसा करने की इच्छा नहीं है। सुरंजन जानता है कि माया जहाँगीर नाम के एक लड़के से प्यार करती है। मौका मिलते ही वह उसके पास मिलने जायेगी। जब एक बार घर से निकली ही है तो फिर चिन्ता किस बात की। दंगा शुरू होने पर हिन्दू परिवारों का हाल-चाल पूछना मुसलमानों का एक तरह का फैशन है। यह फैशन अवश्य ही जहाँगीर भी करेगा और माया उससे धन्य हो जायेगी। माया ने यदि किसी दिन जहाँगीर से शादी कर ली तो! माया से दो क्लास आगे पढ़ता है वह लड़का। सुरंजन का संदेह है कि जहाँगीर अंततः माया से शादी नहीं करेगा। सुरंजन खुद भुक्तभोगी है इसीलिए समझ सकता है। उसकी भी तो शादी परवीन के साथ होते-होते रह गयी। परवीन ने कहा था, तुम मुसलमान बन जाओ। सुरंजन का कहना था धर्म बदलने की क्या आवश्यकता है। इससे तो अच्छा है कि हम दोनों अपना-अपना धर्म मानेंगे। यह प्रस्ताव परवीन के परिवार वालों को नहीं झुंचा। उन लोगों ने एक बिजनेसमैन के साथ परवीन की शादी तय कर दी। परवीन भी रो-धोकर शादी के मंडप में चली गयी।

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