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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


इस देश में क्या नब्बे के बाद भी हिन्दुओं की संख्या में कमी नहीं आयेगी? या फिर बानवे के बाद? सुधामय अपनी छाती के बायीं तरफ एक दर्द महसूस करने लगे। यह उनका पुराना दर्द है। सिर के पीछे की तरफ भी दर्द हो रहा है। शायद प्रेसर बढ़ गया है। सी. एन. एन. में बाबरी मस्जिद का प्रसंग आते ही उस दृश्य को बन्द कर दिया जा रहा है। सुधामय का अनुमान है, इस दृश्य को देखते ही लोग हिन्दुओं के ऊपर टूट पड़ेंगे इसलिए सरकार दया कर रही है। लेकिन खरोंच लगते ही टूट पड़ने की जिन्हें आदत है, क्या वे आर. सी. एन. का दृश्य देखने का इन्तजार करेंगे? सुधामय छातो का बायाँ हिस्सा पकड़कर लेट। माया तब भी बेचैनी से बरामदे में टहल रही थी। वह कहीं चले जाना चाह रस है। सुरंजन के न उठने पर कहीं जाना भी तो सम्भव नहीं हो रहा। सुधामय, बरामदे पर जहाँ धूप आकर पड़ी है, अपनी असहाय दृष्टि डाले हुए हैं। माया की छाया लम्बी हो रही है। किरणमयी स्थिर बैठी हुई है, उसकी भी आँखों में कितनी याचना है-चलो जीयें! चलो, चले जाते हैं! लेकिन घर-द्वार छोड़कर कहाँ जायेंगे सुधामय! इस उम्र में पहले की तरह भाग-दौड़ करना संभव है? पहले जिस तरह जुलूस देखते ही दौड़कर चले जाते थे, घर उन्हें रोक नहीं सकता था, वैसी शक्ति अब उनमें कहाँ। उन्होंने सोचा था कि आजाद और असाम्प्रदायिक बंगला देश में वे अपने राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक आजादी का उपयोग करेंगे। लेकिन धीरे-धीरे इस देश के ढाँचे में धंसती जा रही है धर्मनिरपेक्षता। इस देश का राष्ट्रधर्म अब इस्लाम है। जिस कट्टरपंथी साम्प्रदायिक दल ने इकहत्तर के मुक्ति युद्ध का विरोध किया था और जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिल में छुप गया था, आज उसने बिल से अपना सिर निकाल लिया है। वह आज गर्वित होकर घूम रहा है, जूलूस निकाल रहा रे, बैठकें कर रहा है। उसी ने नब्बे के अक्तूबर में हुए दंगे- फसाद में हिन्दुओं के मन्दिर, घर-द्वार लूट कर, तोड़-फोड़ कर आग लगा दी थी।

सुधामय आँखें मूंद कर लेटे रहे। उन्हें मालूम नहीं है कि इस बार क्या होने वाला है। उत्तेजित हिन्दुओं ने बाबरी मस्जिद तोड़ दी है। उनके पाप का प्रायश्चित अब बंगला देश के हिन्दुओं को करना होगा। बंगला देश के अल्पसंख्यक सुधामयों को नब्बे में हुए दंगे की चपेट से भी रिहाई नहीं मिली थी। फिर बानबे में कैसे मिल जायेगी। इस बार भी सुधामय जैसों को चूहे के बिल में जाकर छुपना होगा। क्या सिर्फ हिन्दू हैं इसीलिए? हिन्दुओं ने भारत में मस्जिद तोड़ी है, इसकी भरपायी सुधामय क्यों करेंगे। वे फिर बरामदे में पड़ रही माया की छाया को देखने लगे। छाया हिल रही है, कहीं और स्थिर नहीं रुकती। छाया हिलते-हिलते अचानक अदृश्य हो गयी। माया पिता के कमरे में घुसी। उसके श्यामल माधवी चेहरे पर बूंद-बूंद पसीने की तरह आशंका जमा हो गयी थी। माया ने झल्लाकर कहा, 'तो फिर, तुम लोग यहीं पड़े रहो, मैं जा रही हूँ।' किरणमयी ने डाँटकर पूछा, 'कहाँ जाओगी?' माया जल्दी-जल्दी बाल झाड़कर बोली, 'पारुल के घर। तुम्हें यदि जीने की इच्छा नहीं है तो फिर मैं क्या कर सकती हूँ। लगता है भैया भी कहीं नहीं जायेंगे।'

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