जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
|
8 पाठकों को प्रिय 360 पाठक हैं |
प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
सुधामय क्या नाम बोलें, सोच ही रहे थे कि उन्हें याद आया किरणमयी ने कहा था, उससे पड़ोसियों ने कहा है कि जिन्दा रहने के लिए नाम बदलना होगा। फातिमा अख्तर जैसा कुछ नाम रखना होगा। सुधामय ने सोचा, उनका हिन्दू नाम अवश्य ही इस वक्त निरापद नहीं है। वे भूल गये अपना नाम, पिता का नाम सुकुमार दत्त, दादा का नाम ज्योतिर्मय दत्त। सुधामय खुद का कण्ठ-स्वर सुनकर खुद ही चौंक गये जब उनके कण्ठ से खुद-ब-खुद अपना नाम निकला-सिराजुद्दीन हुसैन। नाम सुनकर एक ने भारी-भरकम आवाज में गुर्रा कर कहा, 'लुंगी खोलो।' सुधामय ने लुंगी नहीं खोली। वे खुद ही उनकी लुंगी उतार लिये थे। सुधामय ने तब समझा था कि निमाई, सुधांशु, रंजन क्यों भाग गये! भारत विभाजन के बाद काफी संख्या में हिन्दुओं ने देश त्याग दिया। साम्प्रदायिकता की बुनियाद पर भारत-पाकिस्तान का विभाजन होने के बाद हिन्दुओं के लिए सीमा खुली हुई थी। उस वक्त काफी संख्या में हिन्दू, विशेषकर उच्च व मध्य वर्ग के शिक्षित हिन्दू, भारत चले गये। 1981 की जनगणना के अनुसार देश में हिन्दू धर्मावलंबियों की संख्या 1 करोड़ 5 लाख 70 हजार यानी पूरी जनसंख्या का 12.1 प्रतिशत थी। पिछले आठ वर्षों के दौरान यह संख्या बढ़कर अवश्य ही सवा से डेढ़ करोड़ हो गयी होगी। यह अनुमान सरकारी गणना के आधार पर किया गया है जबकि सुधामय का अनुमान है कि जनगणना में भी भेदभाव किया जाता है। हिन्दू धर्मावलंबियों की सही संख्या सरकारी हिसाब से बहुत अधिक है। करीब दो करोड़ के आसपास। कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत हिन्दू इस देश में हैं। 1901 की जनगणना के अनुसार पूर्वी बंगाल में हिन्दुओं की संख्या 33.1 प्रतिशत थी। 1911 में यह संख्या घटकर 31.5 प्रतिशत हो गई। 1921 में 30.6 प्रतिशत, 1931 में 29.4 प्रतिशत और 1941 में 28 प्रतिशत रह गयी। इकतालीस वर्ष में भारत विभाजन से पहले हिन्दुओं की संख्या में पूर्वी बंगाल में पाँच प्रतिशत की कमी आयी थी। लेकिन विभाजन के बाद दस वर्षों में ही हिन्दुओं की संख्या 28 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत हो गयी। यानी चालीस वर्षों में जो कमी आयी, वह महज दस वर्षों में आ गयी। पूरे पाकिस्तान से ङ्कावरे-धीरे हिन्दू भारत जाने लगे। 1961 की जनगणना के अनुसार हिन्दुओं की संख्या 18.5 प्रतिशत थी, जो कि 1974 में घटकर 13.5 प्रतिशत हो गयी। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी हिन्दुओं की संख्या में विभाजन के पहले की ही तरह कमी आयी। 1974 में हिन्दुओं की संख्या 13.5 प्रतिशत थी। 1981 में यदि यह 12.1 प्रतिशत होती है तो अवश्य ही कहा जा सकता है कि अल्पसंख्यक पहले की तुलना में कम हुए हैं। लेकिन पलायन रुका ही कब और किस साल में-तिरासी, चौरासी, पचासी, नवासी या नब्बे में।
|