जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
सुरंजन की आवाज में उदासीनता थी। वह दुकान की जलती हुई रस्सी की ओर देखते हुए बोला, 'नहीं।'
'नहीं?' इस बार लुत्फर ज्यादा चिन्तित हुआ। सुरंजन ने पाया कि उसके सोचने के अंदाज में एक अभिभावक जैसा भाव झलक रहा है। वह समझ गया कि इस वक्त कोई भी उसके साथ इसी तरह का अभिभावकत्व का भाव दिखायेगा। बिना मांगे ही उपदेश देगा-घर पर रहना ठीक नहीं, कहीं छिपकर रहना चाहिए। कुछ दिनों तक घर के बाहर मत जाना। अपना नाम और परिचय किसी से मत कहना। परिस्थिति संभल जाने पर ही निकलना, वगैरह। सुरंजन की इच्छा हुई की एक और सिगार सुलगाये। लेकिन लुत्फर के गंभीरतापूर्ण उपदेश ने उसकी इच्छा को नष्ट कर दिया। काफी ठंड पड़ी है। वह दोनों हाथों को मोड़कर छाती से लगाते हुए पेड़ की गहरी हरी पत्तियों को देखने लगा। हमेशा से वह जाड़े के मौसम का काफी आनन्द देता रहा है। सुबह गरम-गरम पीठा खाना, और रात में धूप में सुखाई हुई गरम रजाई ओढ़कर माँ से भूत की कहानियाँ सुना करता था। यह सोचकर ही वह रोमांचित हो रहा था। लुत्फर के सामने कंधे से झोला लटकाये एक दाढ़ी वाला युवक बेमतलब बोले जा रहा था, ढाकेश्वरी मंदिर, सिद्धेश्वरी काली मंदिर, रामकृष्ण मिशन, महाप्रकाश मठ, नारिन्दा गौड़ीय मठ, भोलागिरि आश्रम सब तोड़ दिया गया है। लूटा भी गया है। स्वामी आश्रम भी लूटा गया है। शनि अखाड़े के पाँच घरों को लूटकर जला दिया है। शनि मंदिर, दुर्गा मंदिर को भी तोड़कर जला दिया गया है। नारिन्दा का ऋषिपाड़ा और दयालगंज का मछुआपाड़ा भी इसकी लपेट से बच नहीं पाया। फार्मगेट, पल्टन और नवाबपुर के मरणचाँद की मिठाई दुकान, टिकाटुली की देशबन्धु मिठाई दुकान को भी लूटकर जला दिया गया। ठठेरी बाजार के मंदिर में भी आग लगा दी गई। लुत्फर ने लम्बी सांस छोड़कर कहा, 'ओह!'
सुरंजन, लुत्फर की लम्बी सांस को कान लगाये सुनता है। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह यहाँ खड़ा रहेगा, जुलूस में शामिल होगा या कहीं और चला जायेगा। या फिर रिश्तेदार विहीन, बन्धुहीन किसी जंगल में जाकर अकेला बैठा रहेगा। झोला लिया हुआ युवक वहाँ से हटकर एक ओर झुंड में शामिल हो गया। लुत्फर भी जाने के लिए मौका ढूँढ़ रहा है। क्योंकि सुरंजन का भावहीन चेहरा उसे बेचैन कर रहा है।
चारों तरफ दबी हुई उत्तेजना है। सुरंजन भी चाह रहा है कि वह झुंड में शामिल हो जाए। उसकी इच्छा है कि कहाँ-कहाँ मंदिर टूटा, जला, कहाँ-कहाँ मकान-दुकानों को लूटा गया, इस चर्चा में हिस्सा ले। वह भी स्वतःस्फूर्त होकर कहे-'इन धर्मवादियों को चाबुक मारकर सीधा करना चाहिए। ये नकाबपोश धार्मिक ही दरअसल सबसे बड़े ठग हैं। लेकिन वह कह नहीं पाता। उसकी तरफ जो भी तिरछी नजरों से देख रहा है, सबकी आँखों से करुणा का भाव झलक रहा है। मानो उसका यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है। मानो वह यहाँ खड़े रहने, उनकी तरह उत्तेजित होने, उनके साथ जुलूस निकालने योग्य व्यक्ति नहीं है। इतने दिनों तक वह भाषा, संस्कृति, अर्थनीति, राजनीति के विषय में मंच और अड्डों पर गरमागरम भाषण देता रहा है, लेकिन आज उसे एक अदृश्य शक्ति ने गूंगा बना दिया है। कोई नहीं कह रहा है कि सुरंजन तुम कुछ कहो, कुछ करो, डटकर खड़े हो जाओ।
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