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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


किरणमयी अस्फुट स्वर में कहती है, 'क्या तुम पागल हो गये हो?'

'हाँ माँ। बहुत दिनों तक भलामानुस था। अब पागल हो गया हूँ। पागल न होने पर मन को शांति न मिलती।'

किरणमयी दरवाजे पर खड़ी होकर सुरंजन का यज्ञ-धूम देखती है। वह नल से पानी लाकर आग बुझाये, उसका यह बोध भी लुप्त हो जाता है। काले धुएँ से सुरंजन का शरीर ढंक जाता है। किरणमयी को लगता है, सुरंजन किताबों को नहीं अपने आप को जला रहा है।

सुधामय सोचते हैं, प्रखर, मेधावी, जीवंत लड़का जो खुद ही विषहरा मंत्र का काम करता था, अब खुद ही विषपान कर रहा है। विषपान करते-करते वह नीला पड़ता जा रहा है। उसका निःशब्द सोये रहना, दोस्तों से चीखकर बातें करना, रात को लड़कियों को घर लाना, मुसलमानों को गाली देना, किताबें जलाना सुधामय समझते हैं। दरअसल, सुरंजन को गहरी ठेस लगी है। परिवार, समाज, राष्ट्र सबके प्रति रूठकर वह अपने आप को हीनता बोघ की अंधी आग में जला रहा है।

सुरंजन को आग देखते हुए बहुत खुशी होती है। पूरे देश के हिन्दुओं का घर इसी तरह आग में जला है, इसी तरह की लपटों में। क्या सिर्फ घर-द्वार और मंदिर ही जले हैं, मनुष्य का मन नहीं जला? अब और सुरंजन सुधामय का आदर्श धोकर पानी नहीं पियेगा। सुधामय वामपंथ में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं, सुरंजन ने भी उसी एक विश्वास पर अपने आपको गढ़ा था। अब वह इस पर विश्वास नहीं करता। उसने अनेक वामपंथियों को 'साला, मालाउन का बच्चा' कहकर गाली देते हुए पाया है। ‘मालाउन' शब्द वह स्कूल से ही सुनता आ रहा है। कक्षा के दोस्तों के साथ बहस होते ही एक-दो शब्द के बाद ही वे कहते, 'मालाउन का बच्चा।' सुरंजन की आँखें जलने लगती हैं, पानी भर आता है। वह समझ नहीं पता है कि यह पानी किसी कष्ट के कारण आया है या आदर्श के जले धुएँ से। जलना खत्म होने पर सुरंजन निश्चिन्तता की साँस छोड़ता है। लेटे हुए जब भी उसकी नजर उन किताबों पर पड़ी है, उनमें से नाना किस्म के नीति कथा के कीड़ों ने उसे कुरेद-कुरेद कर खाया है। वह और नीति-वीति नहीं मानता। काश! वह इतने दिनों के विश्वास पर कसकर एक लात मार पाता! क्यों वह यह सब धारण करेगा, ज्ञान का प्याला मनुष्य होंठों से छुआता है, गले से नीचे नहीं उतारता। वही क्यों अकेला गले से उतारेगा?

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