जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
आज दिसम्बर महीने की आठ तारीख है। सारे देश में हड़ताल है। दरअसल, यह हड़ताल घातक दलाल निर्मूल कमेटी की ओर से घोषित की गयी है। मगर जमाते इस्लामी द्वारा घोषणा की गई कि उसने बाबरी मस्जिद के ध्वंस के खिलाफ हड़ताल रखी है। हड़ताल चल ही रही है, इसी बीच सुरंजन अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर से उठा। सोचा, एक बार घूम आया जाए। आज दो दिन हो गये, उसने अपने प्रिय शहर का चेहरा नहीं देखा। उस कमरे में किरणमयी मारे डर के सहमी हुई है। सुधामय के मन में भी कोई शंका है या नहीं, सुरंजन समझ नहीं पाता। इस बार उसने घर पर साफ कह दिया कि वह कहीं छिपने नहीं जायेगा। मरना होगा तो मरेगा। मुसलमान यदि घर के लोगों को काटते हैं तो काटें। फिर भी सुरंजन घर से कहीं नहीं जायेगा। माया अपने भरोसे गई है, जाए। वह अपने अन्दर जीने की तीव्र इच्छा लिए हुए मुसलमान के घर आश्रय लेने गई है। एक-आध पारुल-रिफात की छतरी के नीचे रहकर बेचारी माया जान बचाना चाह रही है।
लगातार दो दिनों तक बिस्तर में लेटे रहने के बाद जब सुरंजन बाहर निकलने के लिए हुआ, तो किरणमयी हैरान होकर बोली, 'कहाँ जा रहे हो?'
'देखता हूँ, शहर की हालत कैसी है! हड़ताल कहाँ तक सफल है, जरा देखू!' ‘बाहर मत जा, सुरो बेटा! पता नहीं, कब क्या हो जाए।'
'जो होगा, देखा जायेगा। एक दिन तो मरना ही है। अब और मत डरो। तुम्हें डरते हुए देखकर मुझे गुस्सा आता है। बाल झाड़ते हुए सुरंजन ने कहा।
उसकी बात सुनकर किरणमयी काँप उठी। वह लपककर सुरंजन के हाथ से कंघी छीनते हुए बोली, 'मेरी बात सुन, सुरंजन। जरा-सा सावधान हो जा। सुनने में आ रहा है कि बंदी में ही दुकानों को तोड़ा जा रहा है, मन्दिरों को जलाया जा रहा है। घर पर ही रहो। शहर की हालत देखने की कोई जरूरत नहीं।'
सुरंजन हमेशा से जिद्दी रहा है। वह भला किरणमयी की बात क्यों मानेगा? लाख मना करने पर भी वह चला गया। वाहर के कमरे में सुधामय अकेले बैठे थे। वे भी हैरान होकर लड़के का जाना देखते रहे। घर से बाहर कदम रखते ही शाम की स्निग्धता को चीरती हुई वाहर की निर्जनता ने उसे जकड़ लिया। क्या वह थोड़ा डर रहा था? शायद हाँ! फिर भी जव सुरंजन ने आज शहर में घूमने की ठान ही ली है तो वह अवश्य जायेगा। इस बार उसे लेने या हाल-चाल पूछने कोई नहीं आया। न बेलाल आया, न कमाल, न कोई और। अगर वे आते भी तो सुरंजन नहीं जाता। क्यों जायेगा? आये दिन हमला होगा और वे सामान बटोरकर भोगेंगे?
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