जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
शमीमा रिक्शे पर बैठ गयी। सुरंजन ने टिकाटुली चलने को कहा। रास्ते भर वह शमीमा से कुछ नहीं बोला। उसकी तरफ एक बार देखा तक नहीं। एक लड़की उससे सटकर बैठी है, बिना मतलब बातें कर रही है, रह रहकर गाती है, हँसते-हँसते सुरंजन के शरीर पर पड़ना चाहती है लेकिन यह सब सुरंजन को स्पर्श नहीं करता। वह खूब मन से सिगरेट पीता रहता है।
रिक्शा वाला भी काफी खुश नजर आ रहा है। वह झूम-झूमकर रिक्शा चला रहा है, हिन्दी फिल्मों के गाने गुनगुना रहा है। शहर आज सजा हुआ है, लाल-नीली रोशनियों से जगमगा रहा है। वह आज जो कुछ कर रहा है, ठंडे दिमाग से कर रहा है। कोई नशा नहीं कर रहा है।
बाहर से वह कमरे में ताला लगा आया है। घर के दरवाजे को खटखटाये बगैर ताला खोलकर चुपचाप कमरे में घुसा जा सकता है।
कमरे में घुसते ही शमीमा बोली, 'पैसे-वैसे की तो बात ही नहीं हुई।
सुरंजन उसे रोकता है, 'चुप, एक भी बात मत करो। एकदम चुप रहो।'
कमरा उसी तरह अस्त-व्यस्त है। बिस्तर की चादर आधी नीचे लटक रही है। दूसरे कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही है। शायद वे सो गये हैं। सुरंजन कान लगाकर सुनता है। सुधामय कराह रहे हैं। क्या वे समझ रहे हैं कि उनका मेधावी सुपुत्र घर में वेश्या लेकर आया है। यह दीगर बात है कि वह उसे वेश्या नहीं समझता। उसने केवल उसे मुसलमान लड़की समझा है। उसके मन में तीव्र इच्छा है कि वह एक मुसलमान लड़की को 'रेप' करे। वह शमीमा से बलात्कार करेगा, सिर्फ बलात्कार। कमरे की बत्ती बुझा देता है। लड़की को जमीन पर पटक कर उसके कपड़े खींच कर खोल देता है। सुरंजन की सांसें तेज चलने लगती हैं। वह लड़की के उदर पर नाखून गड़ा देता है, दांत से उसके स्तन काटता है, सुरंजन समझ नहीं पाता है कि इसका नाम प्यार नहीं है, वह अकारण ही उसके बाल पकड़कर खींचता है, गाल, गला और स्तनों को काटता है, उदर, पेट, नितंब, जाँघों को तेज नाखून से नोंचता है। लड़की रास्ते की वेश्या होने के बावजूद 'उहं-आह, मर गई, माँ' कहते हुए कराह उठती है। सुनकर सुरंजन को खुशी होती है। वह उसे और भी पीड़ा पहुँचाते हुए, नोंच-खसोट कर बलात्कार करता है। लड़की हैरान होती है। उसने इससे पहले इतना क्रूर ग्राहक नहीं पाया। बाघ के पंजे से जिस तरह छूटकर हिरनी भागना चाहती है, वह लड़की भी उसी तरह अपने कपड़े समेट कर दरवाजे के पास खड़ी हो जाती है। सम्भवतः उसने इतना क्रूर ग्राहक नहीं देखा।
सुरंजन अब बहुत शांत है। वह अपने को बहुत हल्का महसूस करता है। जो इच्छा उसे सारे दिन सता रही थी, उसकी सद्गति हुई। अब इस लड़की को लात मारकर घर से निकाल देने पर उसे और खुशी होगी। उसकी सांस फिर से तेज होने लगी। वह मुसलमान लड़की को तुरंत लात मार दे? नंगी खड़ी है वह लड़की, समझ नहीं पा रही है कि उसे रात में यहीं रहना होगा या चले जाना होगा। चूँकि उसने चुप रहने को कहा है इसलिए वह डर के मारे पूछ भी नहीं रही।
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