जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
शाम को शफीक अहमद की पत्नी घर पर आयीं-आलिया बेगम। पहले अक्सर आ जाया करती थीं, आजकल बहुतेरे ही नहीं आते। हैदर के माता-पिता भी बहुत दिनों से नहीं आये। सुधामय महसूस करते हैं कि किरणमयी बहुत अकेली पड़ गयी है! आलिया बेगम को देखकर किरणमयी थोड़ा हैरान हुई मानो इस घर में किसी को नहीं आना चाहिए। यह घर एक जले हुए घर की तरह है। आलिया बेगम का हँसता हुआ चेहरा, चमकती हुई साड़ी, शरीर के गहनों को देखकर सुधामय सोचते हैं क्या किरणमयी अपने आपको उसके सामने फीकी महसूस कर रही हैं? इतने दिनों तक शायद उन्होंने किरणमयी के साथ अन्याय किया है। एक सम्पन्न, शिक्षित, रुचिशील परिवार की लड़की को एक असम्पन्न, स्वप्नहीन परिवार में लाकर उसको इक्कीस वर्षों से शारीरिक सुख से वंचित रखा है। सुधामय अपने स्वार्थ को ही बड़ा करके देखते रहे, वरना क्या उनको नहीं कहना चाहिए था कि किरणमयी तुम फिर से शादी कर लो। क्या कहने पर किरणमयी चली जाती? क्या उसके गोपन में आलिया बेगम की तरह चमकते जीवन की इच्छा नहीं रही होगी? मनुष्य का मन ही ता है, चली भी जा सकती थी। इसी डर से सुधामय किरणमयी के हमेशा पास-पास रहते थे, यार-दोस्तों को ज्यादा
घर नहीं बुलाते थे। क्यों नहीं बुलाते थे, सुधामय ने बीमारी के दौरान खुद अपनी कमजोर उंगली उठाकर दिखा दी। बोले, सुधामय तुम जो दिन-ब-दिन दोस्त-मित्रों से अलग होते जा रहे थे, वह जान-बूझकर ही था ताकि इस घर में यार दोस्तों के आने-जाने से किरणमयी को कोई सक्षम पुरुष पसंद न आ जाये। किरणमयी के प्रति सुधामय का इतना प्रगाढ़ प्रेम उनकी स्वार्थमयता ही थी। ताकि इस प्रगाढ़ता को देखकर किरणमयी सोचे कि इसे छोड़कर कहीं जाना उचित नहीं। सिर्फ प्यार से क्या मन भरता है? इतने बरसों के बाद सुधामय को लग रहा है, सिर्फ प्यार से ही मन नहीं भरता, कुछ और की भी जरूरत होती है।
आलिया बेगम ने घर की टूटी-फूटी चीजों को देखा, सुधामय के निश्चल हाथ-पाँव देखे, माया के अपहरण की बात सुनी और 'ओह च्च च्च' करते हुए दुख जताया। थोड़ी देर बाद बोली, 'भाभी, इंडिया में आपका कोई रिश्तेदार नहीं रहता?'
'रहता है। मेरे लगभग सभी रिश्तेदार वहीं रहते हैं।'
'तो फिर यहाँ क्यों पड़े हैं?'
'अपना देश है न, इसलिए।'
किरणमयी के जवाब से मानो आलिया बेगम थोड़ा हैरान ही हुई। क्योंकि यह किरणमयी का भी देश है, यह मानो उसने पहली बार ही सुना। आलिया बेगम जितना जोर देकर कहती हे। यह 'मेरा देश' है, क्या किरणमयी को उतना जोर देकर कहना शोभा देता है, शायद आलिया यही बात सोच रही हैं। आज सुधामय को लगा, आलिया और किरणमयी एक नहीं हैं। कहीं एक सूक्ष्म अंतर बन रहा है।
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