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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


ननीगोपाल का लकड़ी का कारोबार था। उन लोगों ने लकड़ी का डिपो जला दिया। इससे भी ननीगोपाल विचलित नहीं हुए। उनको तो डर अंजलि को लेकर है। उसे किसी दिन उठा न ले जायें। वे बोले, 'भैया, ललिता के एक रिश्तेदार फेनी को उसके चाँदपुर वाले मकान व सम्पत्ति के लोभ में, पकड़कर ले गये और उसे मारकर फेंक दिये। जयदेवपुर पिंगाइल के अश्विनी कुमार चंद्र की चौदह साल की लड़की 'मिको' को पकड़कर ले गये और उसके साथ बलात्कार किया, जानते हो? बाद में वह लड़की मर गयी। गोपालगंज के बेद ग्राम के हरेन्द्रनाथ हीरा की लड़की नंदिता रानी हीरा को पकड़कर ले गये। बांछारामपुर के क्षितिश चंद्र देवनाथ की लड़की करुणबाला को गाँव के मुसलमान लड़के उठा ले गये और उसके साथ बलात्कार किया। भोला के काशीनाथ बाजार की शोभारानी की लड़की तंद्रारानी को भी उठा ले गये और उसको 'रेप' किया। टांगाइल के अदालतपाड़ा से सुधीर चंद्र दास की लड़की मुक्तिरानी घोष को अब्दुल कयूम नामक दलाल पकड़कर ले गया। भालुका के पूर्णचंद्र बर्मन की लड़की को जबरदस्ती उठाकर अपने घर ले गये। रंगपुर में तारागंज के तीन कौड़ी साहा की लड़की जयन्ती रानी साहा का अपहरण किया। यह सब नहीं सुना है?'

'यह सब कव की घटना है?' सुधामय ने थकी हुई आवाज में पूछा।

ननीगोपाल ने कहा, '1989 की।'

'इतने दिन पहले की बात याद करके रखे हुए हो?'

'यह सब भी क्या भूलने लायक बात है?'

'क्यों, परी बानू, अनवरा, मनौव्वरा, सूफिया, सुलताना, इन सबकी खबर नहीं रखे हो? इन्हें भी तो पकड़ कर ले गये। इन पर भी तो अत्याचार किया, 'रेप' किया।'

ननीगोपाल फिर से सिर पर दोनों हाथ रखकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद बोले, 'आपकी बीमारी की खबर मिली। देखने आऊँगा, लेकिन खुद की चिन्ता से ही छुटकारा नहीं मिलता। जाते-जाते सोचा, मिलता चलूँ। आज रात में ही 'बेनापोल' चला जाऊँगा। घर-बार बेचना संभव नहीं हो पाया। ललिता के एक मौसेरे भाई से कहा है, वह सुविधा अनुसार बेच देगा।

सुधामय समझ गये कि वे ननीगोपाल को रोक नहीं पायेंगे। उन्होंने सोचा, चले जाने से क्या लाभ। इस देश में बचे हुए लोगों की संख्या यदि और घट जाये तो उनके ऊपर अत्याचार और बढ़ जायेगा। लाभ होगा जो चले जायेंगे उनका, या जो रह जायेंगे, उनका? सुधामय ने महसूस किया, लाभ दरअसल किसी का नहीं है, नुकसान ही सबको है। नुकसान दरिद्रों का, नुकसान अल्पसंख्यकों का। क्या करने से, ठीक कितने लोगों की मौत होने पर इस देश के हिन्दू भारत के आतंकवादी हिन्दुओं के अतीत, वर्तमान, भविष्य के सभी अपराधों का प्रायश्चित कर सकेंगे? सुधामय को यह जानने की इच्छा होती है जानने पर कम-से-कम वे आत्महत्या करते। काफी लोगों को आत्महत्या के लिए कहते। उससे शायद बाकी हिन्दुओं का भला होता।

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