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जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


वह तय करता है कि दिनभर सोयेगा। उसे सोना चाहिए। काफी दिनों से उसे नींद नहीं आयी है। आँखें बंद करते ही उसे लगता है, एक भयानक पंजा उसकी ओर बढ़ रहा है। उसका गला दबाने जा रहा है। उसकी जान लेने के लिए एक के बाद एक हाथ बढ़ते हैं। उसे चैन नहीं आता, एक क्षण के लिए भी शांति नहीं मिलती।

ननीगोपाल मानिकगंज से आये हैं। उनके साथ पत्नी और बच्चे भी हैं। ननीगोपाल सुधामय के दूर के रिश्ते में आते हैं। सुधामय के घर की टूटी-फूटी चीजों को देखकर ननीगोपाल को जरा-सी भी हैरानी नहीं होती। कहते हैं, 'आपका भी घर नहीं छोड़े?'

ललिता, ननीगोपाल की पत्नी, सूनी माँग चूँघट डाले है। वह किरणमयी के दोनों हाथ अपने सीने पर रखकर, 'भाभी' कहते हुए जोर से रो पड़ती है। ललिता की बेटी पास ही सिमटी खड़ी रहती है। क्या नाम है, उसका, सुधामय याद नहीं कर पाते हैं। वह माया की ही उम्र की होगी। एक-दो साल छोटी भी हो सकती है। उसे सुधामय अपलक दृष्टि से देखते रहते हैं। उनकी आँखें फिर धुंधली हो जाती हैं। माया नहीं है, इस बात को वे मानना नहीं चाहते। मानो है, बगल में ही किसी के घर गयी है। या ट्यूशन पढ़ाने गयी है, शाम को वापस आ जायेगी। दरअसल, घर के प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर यह आशा रह ही गयी है कि बलात्कृत, उत्पीड़ित, क्षत-विक्षत होकर भी माया एक दिन वापस आयेगी।

'भैया, इस देश में अब और नहीं रहूँगा। लड़की बड़ी हो गयी है, मन ही मन डरता हूँ, कब क्या हो जाये।'

सुधामय उस लड़की पर से आँखें हटाते हुए बोले, 'चले जाने की बात मेरे सामने मत बोलो। सुना है, बगल के गौतम वगैरह चले जा रहे हैं। सोचा क्या है? कहाँ-कहाँ जायेंगे। जहाँ जायेंगे, वहाँ गुण्डा-बदमाश नहीं रहते? वहाँ डर नहीं है? लड़कियों की सुरक्षा का अभाव सभी देशों में है। कहा जाता है न, 'नदी का यह पाट कहता है छोड़ निःश्वास, उस पाट में है सर्व सुख, मेरा विश्वास!' तुम्हारी भी यही हालत है।'

ननीगोपाल पाजामा-कुर्ता पहने हुए हैं। उनके चेहरे पर दो-चार दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी है। वे माथे पर दोनों हाथ रखे चुपचाप बैठे रहते हैं।

ललिता रोती है। आशंका से रोती है और किरणमयी पत्थर की मूर्ति बनी ललिता का रोना सुनती हैं। इस बात के लिए भी उनकी आवाज नहीं निकलती कि वे लोग माया को उठाकर ले गये हैं और वह आज तक नहीं लौटी।

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