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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'छियासठ में 'छठा दफा आंदोलन', शुरू हुआ, उनहत्तर में जन-उत्थान, सत्तर के निर्वाचन से मुक्ति युद्ध के पहले तक हिन्दू घटे हैं। 1955 से 1960 तक बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। साठ से पैंसठ के बीच करीब दस लाख लोग चले गये। युद्ध शुरू होने पर करीब एक करोड़ लोगों ने भारत में शरण ली। इनमें अस्सी फीसदी हिन्दू थे। युद्ध के बाद लौटने पर हिन्दुओं ने पाया कि उनका घर-बार सब कुछ बेदखल हो गया है। काफी लोग उस समय फिर वापस लौट गये और कुछ ही इस उम्मीद में रहे कि स्वतंत्र देश उन्हें सुरक्षा देगा। उसके बाद तो तुमने देखा ही है। '74 में मुजीब सरकार ने 'शत्रु सम्पत्ति' के नाम को छोड़कर और कुछ चेंज नहीं किया। जिया उर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता विरोधी साम्प्रदायिक शक्ति को सत्ता में बैठाया। संविधान से धर्म निरपेक्षता को हटा दिया। इसके बाद इरशाद आये तो उन्होंने इस्लामी पुनरुज्जीवन शुरू किया। 1982 के 22 दिसम्बर को इरशाद ने घोषणा की कि इस्लाम और कुरान की नीति ही देश के नये संविधान का आधार होगी। चौबीस वर्षों तक धर्म के नाम पर शोषित होने के बाद धर्म फिर राजनीतिक जीवन में सदंभ वापस आयेगा, किसने सोचा था।' एक चाय-दुकान देखकर वे रुके। काजल देवनाथ, सुरंजन को ऊपर से नीचे तक देख कर बोले, 'तुम बड़े बेमन से लग रहे हो। जिन सवालों को तुम बहुत अच्छी तरह जानते हो, उन्हें ही फिर से पूछ रहे हो। क्यों? लगता है तुम्हारे अंदर तेज उथल-पुथल है। ऐसे वक्त में स्थिर रहो सुरंजन। तुम जैसे प्रतिभावान लड़के के हताश होने से कैसे चलेगा?'

एक टेबुल पर दोनों आमने-सामने बैठ गये। काजल देवनाथ ने पूछा, 'चाय के साथ कुछ लोगे?'

सुरंजन ने सिर हिलाया, 'हाँ।' उसने दो समोसे लिये। काजल देवनाथ ने भी समोसे लिये। खाने के बाद दुकान के लड़के से बोले, 'पानी लाओ।'

'पानी' शब्द सुरंजन ने सुना। काजल देवनाथ घर में 'जल' बोलते हैं। लेकिन आज उन्होंने 'पानी' कहा। क्या पानी कहते-कहते अभ्यास हो गया है इसलिए बोले। या फिर डर से? सुरंजन की जानने की इच्छा हुई। पूछना चाहते हुए भी उसने नहीं पूछा। उसे लगा कि एक साथ कई जोड़ी आँखें उनका निरीक्षण कर रही हैं। वह तेजी से चाय पीता है। क्या डर कर? उनके अंदर इतना डर क्यों पैदा हो रहा है? गरम चाय की अचानक चुस्की लेने में उसकी जीभ जल गयी। तीखी निगाह से पास वाले टेबुल का जो लड़का उन्हें देख रहा है उसकी थुथनी में थोड़ी-सी दाढ़ी, सिर पर क्रुश से बुनी हुई टोपी है। उम्र यही कोई, इक्कीस-बाईस होगी। सुरंजन को लगा, माया को जो लोग ले गये हैं, यह लड़का जरूर उन्हीं में से एक होगा। वरना कान लगाये हुए क्यों है? उसका इधर इतना ध्यान क्यों है। सुरंजन ने पाया कि वह लड़का मुँह दबा-दबा कर हँस रहा है। तो क्या इसलिए हँस रहा है कि कैसा मजा चखाया, तुम्हारी बहन से तो मनचाहा खेल खेल रहे हैं हम लोग। सुरजन की चाय खत्म नहीं होती है। कहता है, 'चलिए, उठते हैं काजल दा। अच्छा नहीं लग रहा है।'

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