जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
वैसे हिन्दुओं की पूजा के समय माइक पर रोक रहती है। यदि माइक बजता ही है तो सिर्फ मुसलमानों का माइक ही क्यों बजेगा? राष्ट्र संघ मानवाधिकार सार्वजनिक घोषणापत्र की 28वीं धारा में कहा गया है, 'प्रत्येक को सोच, विवेक और धर्म की स्वाधीनता का अधिकार है। अपने धर्म अथवा विश्वास परिवर्तन की स्वतंत्रता एवं अकेले अथवा दूसरों से मिलकर खुलेआम या गोपनीय रूप से अपने धर्म या विश्वास के अनुरूप शिक्षा-दान, प्रचार, उपासना और पालन के जरिए व्यक्त करने की स्वतंत्रता इस अधिकार में अंतर्निहित है। यदि ऐसा ही है तो हिन्दुओं के मंदिर क्यों तोड़ेंगे। हालाँकि सुधामय का मंदिर में विश्वास नहीं है, फिर भी मंदिर को ही तोड़े जाने का पक्ष वे नहीं ले सकते। और, यह जो इतनी तोड़-फोड़, आगजनी हो रही है, क्या इनके लिए कोई सजा नहीं है? 'पेनलकोड' में इसकी सजा एक साल, ज्यादा से ज्यादा दो साल या बहुत ज्यादा हो तो तीन साल लिखी गयी है।
सुधामय की खुद की बीमारी को पीछे छोड़ते हुए अन्य बीमारियाँ उन्हें ग्रस लेती हैं। एक-एक क्रमशः अस्वस्थ होता जा रहा है। लंबे समय के संग्राम के बाद पाकिस्तानियों के चंगुल में बंगालियों को मुक्ति मिली, स्वाधीन देश का एक संविधान बना "We the people of Bangladesh having proclaimed our Independence on the 26th day of March 1971 and through a historic Struggle for national liberation, established the independent, Sovereign People's Republic Bangladesh."
Pledging that the high ideals of nationalisin, socialism, democracy, and secularism, which inspired our heroic people to dedicate themselves to, and our brave martyrs to sacrifice their lives in the national liberation struggle, shall be the fundamental principles of the constitution.
Struggle for national liberation 1978 में बदल कर a historic war for national independence हो गया। और...high ideas of absolute trust and faith in the Almighty Allah nationalism, democracy and socialism meaning economic social justic किया गया, ऊपर से laberation struggle हो गया independence.
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