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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


अंग्रेजों ने इस बात को समझा था कि हिन्दू-मुसलमानों की एकता व सद्भावना को तोड़े बिना उनके लिए भारत में उपनिवेशी शासन और शोषण करना संभव नहीं। उनकी कूटनीति से ही पैदा हुआ डिवाइड एंड रूल। सुधामय ने सोचा, ऐसा कैसे संभव हुआ जहाँ नब्बे फीसदी किसान मुसलमान थे, वहीं नब्बे फीसदी जमीन हिन्दुओं की थी। जमीन को लेकर ही रूसी-चीनी क्रांति, जमीन को लेकर ही बंगाल में हिन्दू-मुसलमान का संघर्ष। जमीन का संघर्ष ही धर्म का संघर्ष होकर खड़ा हुआ। अंग्रेजों के तुष्टिकरण से ही इस बंगाल में 1906 में साम्प्रदायिकता के आधार पर 'मुस्लिम लीग' का जन्म हुआ था। अविभाजित भारत के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को साम्प्रदायिक विष से कलुषित करने के लिए यह दल ही उत्तरदायी है। वैसे कांग्रेस भी दोषमुक्त नहीं रही। सन् सैंतालीस के बाद चौबीस वर्ष तक साम्राज्यवाद के सहयोगी पाकिस्तानी शासकों ने इस्लामी इतिहास, भारत विरोधी स्वर और साम्प्रदायिकता का धुआँ उड़ाकर इस देश के गणतांत्रिक मनुष्य के अधिकार का हरण किया था। इकहत्तर में उस अधिकार को वापस पाकर सुधामय ने निश्चिन्तता की साँस ली थी। लेकिन उनकी साँस बीच-बीच में ही अटकने लगती है। बांग्लादेश के स्वाधीन होने के बाद चार राष्ट्रीय मूलनीतियों में एक धर्म-निरपेक्षता को भी स्थान दिया गया। यह थी साम्प्रदायिक पुनरुत्थान के विरुद्ध एक दुर्जय दीवार। पचहत्तर के पंद्रह अगस्त के बाद ही साम्प्रदायिकता का नया जन्म हुआ। साम्प्रदायिकता से गठबंधन हुआ हिंसा, कट्टरपंथ, धर्मान्धता, स्वेच्छाचार का। साम्प्रदायिक सोच को भद्रता का लिबास पहनाने के लिए एक आदर्श आधारित सिद्धांत की जरूरत पड़ती है। पाकिस्तान बनाने से पहले इस सिद्धांत का नाम दिया गया 'द्विराष्ट्रीयता का सिद्धांत' और बांग्लादेश में पचहत्तर के बाद इसी का नाम हुआ बांग्लादेशी राष्ट्रीयतावाद। हजारों बरसों की बांग्ला विरासत को धो-पोंछकर उन्हें बांग्लादेशी होना होगा। बांग्लादेशी गाय, गधा, धान, पाट की ही तरह मनुष्य भी अब 'बांग्लादेशी' है। सन् अट्ठासी के आठवें संशोधन के बाद बांग्लादेश के संविधान में लिखा गया-The State religion of the Republic is Islam, but other religions may be practised in peace and harmony in the Republic. यहाँ पर may be शब्द क्यों कहा गया? shall be क्यों नहीं? मौलिक अधिकारों के बारे में वैसे लिखा हुआ है 'सिर्फ धर्म, समूह, वर्ण, स्त्री, पुरुष भेद या जन्म स्थान के कारण किसी नागरिक के प्रति राष्ट्र वैषम्य का प्रदर्शन नहीं कीजिएगा।' लेकिन विषमता की बात स्वीकार न करने से क्या होगा, विषमता यदि मौजूद न हो तो माया को वे लोग क्यों उठा ले गये। क्यों गाली देते हैं 'मालाउन का वच्चा' कहकर? गुंडे क्या ‘मालाउन का बच्चा' कह कर गाली देते हैं? वैसा होने पर वह सिर्फ गुंडागर्दी नहीं, और कुछ भी है, जो दिन-ब-दिन घना होता जा रहा है। स्कूल की जगह देश में मदरसे बढ़ रहे हैं, मस्जिदें बढ़ रही हैं, इस्लामी जलसे बढ़ रहे हैं, माइक में अजान बढ़ रही है, एक मुहल्ले में दो-तीन घरों के अंतराल पर मस्जिद, चारों तरफ उसकं माइक।

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