जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
वह सुरंजन के सिरहाने के पास चौकी की पाई से पीठ टिकाती हुई बैठ जाती है। उसे भी सुरंजन के साथ बात करते हुए अच्छा लग रहा है। वह रह-रहकर लम्बी साँस छोड़ती है और कहती है, 'मुझे यहाँ से जाते हुए माया हो रही है।' उस लड़की के 'माया' शब्द उच्चारण करते ही सुरंजन का शरीर सिहर उठा। वह उसे और नजदीक आकर बैठने को कहता है। मानो अब वह ही माया है। बचपन की माया, अपने भैया के पास बैठकर बातें करती थी जो लड़की! स्कूल की बातें, खेलकूद की बातें! कितने दिन हो गये वह माया को पास बैठाकर बात नहीं किया। बचपन में नदी के किनारे सुरंजन अन्य बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी का घर बनाया करता था। माया भी बनाती थी। शाम को बनाकर रखते थे, और रात के अंधेरे में उफनता हुआ पानी उनके उन घरौंदों को तोड़ जाता था। हवाई मिठाई खाकर जीभ गुलाबी करने वाले वे दिन, वह महुआ मलुवा का दिन, घर से भागकर काशवन में घूमने वाले वे दिन उस लड़की को सुरंजन हाथ बढ़ाकर छूता है। माया की तरह नरम-नरम हाथ। माया का हाथ अब कौन लोग पकड़ा होगा, अवश्य ही कोई निर्मम, कर्कश हाथ। क्या माया भागना चाह रही होगी? भागना चाह रही होगी, फिर भी भाग नहीं पा रही है। उसका शरीर फिर सिहर उठा। वह मादल का हाथ पकड़े ही रहता है। मानो वह ही माया है। छोड़ने पर कोई उसे पकड़कर ले जायेगा। किसी मजबूत रस्सी से बाँध देगा। मादल ने पूछा, 'आपका हाथ क्यों काँप रहा है?'
'काँप रहा है? तुम्हारे लिए बहुत माया हो रही है। तुम चली जाओगी जो!'
'हम लोग तो इंडिया नहीं जा रहे हैं। मीरपुर जा रहे हैं। सुबला लोग तो इंडिया चली जा रही है।'
'जब वे लोग तुम्हारे घर में घुसे, तुम क्या कर रही थीं?'
'बरामदे में खड़ी होकर रो रही थी। डर से। वे लोग हमारे टेलीविजन को भी उठा ले गये हैं। अलमारी से गहने का बक्सा ले गये और पिताजी का रुपया भी ले गये।'
'तुम्हें उन लोगों ने कुछ नहीं कहा?'
'जाते समय मेरे गाल में जोर से दो थप्पड़ मारा और कहा-चुप रहो, रोना मत।'
'और कुछ नहीं किया? तुम्हें पकड़कर ले जाना नहीं चाहा?'
'नहीं। माया दीदी को उन लोगों ने बहुत मारा है न? मेरे भैया को भी मारा। भैया सोया हुआ था। उसके सिर पर लाठी से मारा। बहुत खून बहा।'
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