जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
सुरंजन सोचता है माया यदि मादल के उम्र की होती तो शायद बच जाती। उसे उस तरह से खींच-तानकर कोई नहीं ले जाता। माया को कितने लोगों ने मिलकर बलात्कार किया होगा? पाँच? सात? या उससे भी ज्यादा। क्या माया का बहुत खून बह रहा है?
मादल ने कहा, 'माँ ने मुझे भेजा है, कहा है जाओ मौसीजी के साथ मिल आओ। मौसीजी तो खूब रो रही हैं।'
'मादल तुम मेरे साथ घूमने चलोगी?'
'माँ सोचेगी।'
'माँ से पूछ कर चलना।'
माया हमेशा कहती थी, 'भैया, एक बार काक्स बाजार में घुमाने ले जाओगे? चलो न मधुपुर जंगल में चलते हैं। मुझे बहुत सुन्दर वन देखने की इच्छा होती है।' कुछ दिनों तक तो जीवनानन्द की कविता पढ़कर जिद्द करने लगी कि 'नाटोर' जाएँगे। सुरंजन माया की हर जिद्द को 'धत्' कहकर टाल देता था। कहता, 'रखो तुम्हारा नटोर-फटोर। उससे अच्छा है तेजगाँव बस्ती में जाओ, लोगों को देखो। मनुष्य का जीवन देखो। उन पेड़-पौधों, पहाड़-पर्वतों को देखने से ज्यादा बेहतर होगा। माया
का सारा उत्साह फुर्र हो जाता था। आज सुरंजन को महसूस हो रहा है, कि क्या फायदा हुआ जीवन देखकर? क्या फायदा हुआ जन्म से मनुप्य का भला चाहकर? कृषि श्रमिकों का आन्दोलन, प्रलेतारियेत उत्थान, समाजतंत्र का विकास, इन बातों को सोचने से क्या फायदा। आखिरकार समाजतंत्र का पतन तो हो ही गया। रस्सी बाँधकर लेनिन को उतार ही दिया गया। अंततः हार तो हुई ही, जो लड़के मानवता का गीत गाते फिरते थे, उन्हीं के घर पर ज्यादा अमानवीय हमला हुआ।
मादल धीरे से उठ जाती है। उसके हाथ से माया के हाथ की तरह मादल का कोमल हाथ भी छूट गया।
हैदर आज भी नहीं आया। या फिर वह रण से भाग लिया है! वह और झमेले में पड़ना नहीं चाहता। सुरंजन भी समझता है कि माया को ढूँढ़ना व्यर्थ है। माया को यदि वापस लौटना होगा तो उस छह वर्ष की बच्ची की तरह खुद ही वापस आ जायेगी। सुरंजन को बहुत खाली-खाली लग रहा है। जब माया पारुल के घर पर थी, तब भी यह घर इसी तरह निस्तब्ध था, लेकिन उसे ऐसा तो नहीं लग रहा था। वह जानता था कि माया है, वापस आ जायेगी। लेकिन अब तो घर श्मशान की तरह लग रहा है। मानो किसी की मौत हो गयी है। कमरे में शराब की बोतल, पैर के पास लुढ़की हुई गिलासे, बिखरी हुई किताबें, इन सबको देखते-देखते सुरंजन की सूनी छाती में पानी भर आया। मानो आँखों का सारा पाना छाती में ही आकर जमा हो गया है।
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