जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
'शाम के वक्त मुझे घूमने की बड़ी इच्छा होती थी। माया को भी घूमने का बड़ा शौक था। उसे एक दिन 'शालवन विहार' ले जाऊँगा।'
विरुपाक्ष ने कहा, 'जनवरी की दो तारीख से उलेमा मशायखों का लांगमार्च है।'
'किस बात के लिए लांगमार्च?'
'वे लोग पैदल चलकर भारत जाएँगे, बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण के लिए!'
'हिन्दुओं को भी साथ रखेंगे लांगमार्च में? लेने से मैं भी जाऊँगा। तुममें से कोई जाएगा?' सुरंजन ने पूछा।
सभी चुप्पी साधे-एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।
देवव्रत ने काफी हद तक धमकाने की आवाज में कहा, 'तुम इतना 'हिन्दू मुसलमान' – 'हिन्दू-मुसलमान' क्यों कर रहे हो। तुम्हारा हिन्दुत्व कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है!'
'अच्छा देवू लड़कों को ‘सरकमशिसन' न करने पर पता चलता है वह हिन्दू है। लेकिन लड़कियों के 'हिन्दू' समझे जाने का क्या उपाय है, बताओ तो? माया को ही लो। माया को यदि रास्ते में छोड़ दिया जाए। मान लो उसके हाथ-पैर बँधे हुए हों, तो कैसे पता चलेगा कि वह हिन्दू है? उसका तो मुसलमानों की तरह ही आँख-नाक, मुँह-हाथ, पैर-सिर है।'
सुरंजन की किसी भी बात का जवाब न देते हुए देवव्रत ने कहा, 'जिया-उररहमान के समय फरक्का के पानी के लिए सीमांत तक राजनीतिक लांगमार्च हुआ था। खालिदा जिया की हुकूमत में 1993 साल शुरू होगा बाबरी मस्जिद निर्माण के लिए साम्प्रदायिक लांगमार्च के बीच से। फरक्का का लांगमार्च जिस तरह पानी के लिए नहीं था, बाबरी मस्जिद का लांगमार्च भी उसके पुनर्निर्माण के लिए नहीं होगा। दरअसल, बाबरी मस्जिद को लेकर इतना हंगामा करने का मकसद राजनीति को साम्प्रदायिकता के पावरहाउस में परिणत करना और गुलाम आजम विरोधी आन्दोलन से लोगों का ध्यान हटाना है। इस समय सरकार की एयरटाइट चुप्पी भी ध्यान देने लायक है। इतना कुछ हो रहा है, लेकिन सरकार कहे जा रही है-इस देश में साम्प्रदायिक सद्भावना है।'
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