लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


दंगा तो बाढ़ नहीं है कि पानी से उठाकर लाते ही खतरा टल गया। फिर चिउड़ा-मुढ़ी कुछ भी जुगाड़ कर पाने से ही फिलहाल की समस्या हट गयी। दंगा तो आग का लगना नहीं है कि पानी डाल कर बुझा देने से ही छुटकारा मिल जायेगा। दंगे में आदमी अपनी आदमीयत को भी स्थगित रखता है। दंगे में आदमी के मन का जहर बाहर निकल आता है। दंगा कोई प्राकृतिक घटना नहीं है, कोई दुर्घटना नहीं है, दंगा मनुष्यत्व का विकार है। सुधामय ने लंबी साँस छोड़ी। किरणमयी कमरे के एक कोने में भगवान के सामने बैठी माथा ठोंक रही है। मिट्टी की प्रतिमा नहीं है। उस दिन उन लोगों ने तोड़ डाला। राधा-कृष्ण का एक चित्र कहीं रखा हुआ था, उसी को सामने रखकर किरणमयी माथा ठोंकती है। और, चुपचाप आँसू बहाती है। सुधामय अपने निश्चल शरीर के साथ लेटे-लेटे सोचते हैं, राधा या कृष्ण में कोई क्षमता है माया को वापस लाने की। यह जो तस्वीर है, सिर्फ तस्वीर ही तो है-केवल एक कहानी! यह कैसे माया का कठोर, कठिन, निष्ठुर कट्टपंथियों के चंगुल से उद्धार करेगी! इस देश का नागरिक होकर भी, भाषा आंदोलन करके भी, युद्ध करके पाकिस्तानियों को खदेड़ कर देश को स्वाधीन कराने के बाद भी इस देश में उन्हें सुरक्षा नहीं मिली। तो ये कहाँ के, कौन राधा-कृष्ण! जिसे न कहा, न सुना वे सुरक्षा देंगे! इनका खा-पीकर और कोई काम नहीं है। जहाँ बचपन से जाना-पहचाना पड़ोसी ही तुम्हारे घर को कब्जे में कर ले रहा है, तुम्हारे बगल वाले मकान के देसी भाई ही तुम्हारी लड़की का अपहरण कर ले रहे हैं। और, वहाँ तुम्हारी दुर्गति दूर करने कोई ‘माखनचोर' आएगा! आयान घोष की पत्नी (राधा) आएगी! दुर्गति यदि दूर करनी ही है तो सब मिलकर एक जाति होने के लिए जिन लोगों ने युद्ध किया था, वही करेंगे।

सुधामय ने थकी हुई करुण आवाज में किरणमयी को पुकारा-'किरण, किरण!

किरणमयी के रोबोट की तरह सामने आकर खड़ा होते ही उन्होंने पूछा, 'सुरंजन, आज माया को ढूँढ़ने नहीं गया?'

'पता नहीं!'

'क्या तो हैदर ने खोजने के लिए आदमी लगाया है! क्या वह आया था?'

'नहीं।'

'तो क्या माया का कोई पता नहीं चल पा रहा है?'

'पता नहीं।'

'मेरे पास जरा बैठोगी, किरण?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book