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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'उस दिन देव राय का एक लेख पढ़ा। लिखा है-बड़े गुलाम अली अपने सुरमंडल लेकर खड़े हो नाच-नाच कर गा रहे हैं-'हरि ओम तत्सत्, हरि ओम तत्सत्।'

आज भी बड़े गुलाम अली वही एक ही गाना गाये जा रहे हैं। लेकिन जो लोग बाबरी मस्जिद को तोड़कर धूल में मिलाकर वहाँ पर रामलला की मूर्ति बैठा कर भाग आये, वे हिन्दू क्या यह गाना नहीं सुन पाते हैं। इस गाने को आडवाणी, अशोक सिंघल सुन नहीं पाते। क्या इस गाने को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या बजरंगदल सुन नहीं पाता। बड़े गुलाम अली मुसलमान थे। लेकिन उनके कंठ से निकला हुआ यह 'हरि ओम तत्सत्' वे मुसलमान भी नहीं सुन पाते जो सोचते हैं कि मस्जिद तोड़ने का एकमात्र विरोध मंदिर तोड़ना ही हो सकता है।'

'इसका मतलब यह है, तुम कहना चाह रहे हो कि मंदिर तोड़े जाने के कारण मस्जिद का तोड़ा जाना उचित नहीं है। तुम तो मेरे पिता की तरह आदर्शवाद की बातें कर रहे हो। आई हेट हिम। आई हेट दैट ओल्ड हेगर।'

सुरंजन उत्तेजित होकर बिस्तर से उठकर खड़ा हो जाता है।

'शांत हो जाओ सुरंजन। शांत हो जाओ। तुम जो कुछ भी कह रहे हो यह कोई समस्या का समाधान नहीं है।'

'मैं इसी तरह का समाधान चाहता हूँ। मैं अपने हाथ में भी कटार, तमंचा, पिस्तौल चाहता हूँ। मोटी-मोटी लाठी चाहता हूँ। वे लोग पुराने ढाका के एक मंदिर में पेशाब कर आये थे न? मैं भी उनकी मस्जिद में पेशाब करना चाहता हूँ।'

'ओह सुरंजन! तुम कम्युनल होते जा रहे हो।'

'हाँ, मैं कम्युनल हो रहा हूँ। कम्युनल। कम्युनल हो रहा हूँ।'

देवव्रत, सुरंजन की पार्टी का लड़का है। कई काम में दोनों साथ-साथ रहे। वह सुरंजन के आचरण को देखकर हैरान रहता है। शराब पीना चाहता है। अपने ही मुँह से कह रहा है, कम्युनल हो रहा है। अपने पिता तक को गाली दे रहा है।

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