जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
रोने की आवाज का वे अनुसरण करते हैं। लेकिन वहाँ जाकर पाते हैं कि टीन की छत वाले एक मकान से एक बच्चे के रोने की आवाज आ रही है। हैदर बारीकी से एक-एक जगह की तलाश करता है। रात भी गहरी होती जा रही है। पर सुरंजन नहीं रुकता। हर गली में झुंड-के-झुंड आँखें लाल किये लड़के खड़े हैं। उन्हें देखकर सुरंजन को लगता है, शायद यही लोग लाये होंगे, यही लोग उसकी मायावी चेहरे वाली मासूम बहन को बंदी बनाकर रखे होंगे।
'हैदर, माया क्यों नहीं मिल रही है? अभी तक माया को क्यों नहीं ढूँढ पा रहे हो?'
'मैं तो पूरी कोशिश कर रहा हूँ।'
'किसी भी तरह माया आज रात के अन्दर मिलनी ही चाहिए।'
‘ऐसा कोई भी गुंडा-मस्तान नहीं है जिसे मैं नहीं ढूँढ़ रहा हूँ। न मिलने पर क्या कर सकता हूँ, बोलो!!
सुरंजन एक के बाद एक सिगरेट सुलगाता है। माया के पैसे से खरीदी गयी सिगरेट।
'सुपर स्टार में चलो कुछ खा लेता हूँ, भूख लगी है।'
हैदर परांठा-मांस का आर्डर देता है। दो प्लेट। सुरंजन खाना चाहता है लेकिन परांठे का टुकड़ा उसके हाथ में ही रह जाता है। मुँह तक नहीं जाता। जितना समय बीत रहा है, उसकी छाती के अन्दर उतना ही हाहाकार हो रहा है। हैदर जल्दी-जल्दी खाता है। खाकर सिगरेट जलाता है। सुरंजन उसे जल्दी करने को कहता है, 'चलो चलते हैं, अब तक तो नहीं मिली।
‘और कहाँ खोजें, बोलो! किसी भी जगह को तो बाकी नहीं रखा है। अपनी आँखों से तुमने देख लिया!'
'ढाका एक छोटा शहर है। यहाँ पर माया को ढूँढ़ नहीं पायेंगे, यह भी कोई बात हुई? थाने में चलो!'
थाने में रपट लिखाने गया तो पुलिस के आदमी ने भावहीन चेहरे से रजिस्टर खींचकर नाम-धाम-पता सब लिखकर रख लिया। बस, थाने से निकलकर सुरंजन ने कहा, 'मुझे नहीं लगता, ये लोग कुछ करेंगे।'
'कर भी सकते हैं।'
'वारिक की ओर चलो चलते हैं। वहाँ तुम्हारी जान-पहचान का कोई है?'
'मैंने पार्टी के लड़कों को लगा दिया है। वे लोग भी ढूँढेंगे। तुम चिंता मत करो।'
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