जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
सुरंजन ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। कब ले गये इसे जानने से ज्यादा जरूरी क्या यह नहीं है कि ले गये हैं? हैदर के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभरती हैं। पार्टी की बैठक थी, बैठक खतम कर वह अभी-अभी घर आया है। अब तक कपड़े भी नहीं बदले। सिर्फ शर्ट का बटन भर खोला है। सुरंजन बेचारगी भरी नजरों से हैदर को देख रहा है। बाढ़ में सब कुछ बह जाने के बाद इंसान का चेहरा जैसा दिखता है, ठीक उसी प्रकार वह इस वक्त दिख रहा है। सुरंजन दरवाजा पकड़कर खड़ा है। जिस हाथ से उसने दरवाजा पकड़ा है। उसका वह हाथ काँप रहा है। हाथ का काँपना रोकने के लिए वह मुट्ठी कस लेता है। हैदर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता है, 'तुम शांत होओ, घर में बैठो, मैं देखता हूँ क्या किया जा सकता है।'
कंधे पर हाथ पड़ते ही सुरंजन सुबक पड़ता है। हैदर को दोनों हाथों से पकड़कर कहता है, 'माया को ला दो हैदर, माया को ला दो!'
सुरंजन रोते-रोते झुकता है। झुकते-झुकते वह हैदर के पैर के पास लोट जाता है। हैदर हैरान होता है। इस्पात की तरह कठोर उस लड़के को उसने कभी रोते नहीं देखा। वह उसे उठाकर खड़ा करता है। हैदर तब तक रात का खाना नहीं खाया था, भूखा पेट। फिर भी, 'चलो' कहकर निकल पड़ा। ‘होंडा' के पीछे सुरंजन को बैठाकर टिकाटुली का गली-कूचा छान मारा। सुरंजन पहचानता तक नहीं, ऐसे कमरों में घुसा। टिमटिमाती बत्ती जल रही है, ऐसी कुछ पान-बीड़ी की दुकानों में जाकर फुसफुसाकर बात की। टिकाटुली पार करके इंग्लिश रोड़, नवाबपुर लक्ष्मीबाजार, लालमोहन साह स्ट्रीट, बक्शी बाजार, लालबाग, सूत्रापुर, वाइजघाट, सदरघाट, प्यारी मोहन दास रोड, अभय दास लेन, नारिन्दा, आलो बाजार, ठठेरी बाजार, प्यारी दास रोड, बाबू बाजार, उर्दू रोड, चक बाजार-सभी जगह होंडा दौड़ाया हैदर ने। संकरी गली के अंदर घुटने तक कीचड़-पानी से होकर एक-एक अंधेरी कोठरी को खटखटा कर हैदर किसे खोज रहा था, सुरंजन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। हैदर एक-एक जगह पर उतर रहा था और सुरंजन को लग रहा था कि शायद माया यहीं मिल जायेगी। माया को शायद यहीं पर वे लोग हाथ-पाँव बाँधकर पीट रहे होंगे, क्या सिर्फ पीट रहे हैं या और कुछ कर रहे हैं! सुरंजन कान लगाये रखता है कि कहीं से माया के रोने की आवाज सुनाई पड़ जाये।
लक्ष्मी बाजार के पास रोने की आवाज सुनकर सुरंजन होंडा रोकने को कहता है। कहता है, 'सुनो तो, लगता है माया के रोने की आवाज है न?'
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