लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


सुरंजन घर में घुसते हुए हैरान होता है, दरवाजा पूरा खुला हुआ है। सारा सामान बिखरा पड़ा है, टेबल उल्टा पड़ा है, किताब-कापी जमीन पर बिखरी हुई हैं। बिस्तर का गद्दा-चादर कुछ भी अपनी जगह पर नहीं है। कपड़ों का रैक टूटा पड़ा है। कपड़ा-लत्ता पूरे घर में बिखरा है। उसकी साँस रुकने लगती है। वह एक कमरे से दूसरे कमरे में जाता है। काँच के टुकड़े, कुर्सी का टूटा हुआ पाया, फटी हुई किताबें, दवा की बोतलें, फर्श पर बिखरी हुई हैं।

सुधामय फर्श पर औंधे मुँह पड़े हुए कराह रहे हैं। माया, किरणमयी कोई नहीं है। सुरंजन पूछने से डरता है कि घर में क्या हुआ। सुधामय नीचे क्यों पड़े हुए हैं? वे लोग कहाँ गयीं? पूछते हुए सुरंजन ने पाया कि उनका गला काँप रहा है। वह बुत की तरह खड़ा रहता है।

सुधामय धीरे से कराहते हुए बोले, 'माया को पकड़कर ले गये हैं।'

सुरंजन का सारा शरीर काँप उठा, 'पकड़कर ले गये, कौन ले गये? कहाँ? कब?'

सुधामय पड़े हुए हैं, न हिल पा रहे हैं, न किसी को पुकार रहे हैं। सुरंजन ने धीरे से सुधामय को उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया। वे तेज-तेज साँस ले रहे हैं, और तेजी से उनका पसीना छूट रहा है।

‘माँ कहाँ है?' सुरंजन ने अस्पष्ट स्वर में पूछा।

सुधामय का चेहरा आशंका-हताशा से नीला पड़ गया है। उनका सारा शरीर काँप रहा है। ‘प्रेसर' बढ़ने पर कुछ भी हो सकता है। वह अभी सुधामय को देखेगा या माया को ढूँढ़ने जायेगा कुछ तय नहीं कर पाता है। उसके हाथ-पाँव भी काँप रहे हैं, उसके सिर में मानो क्रोध रूपी जल उफन रहा है। उसकी आँखों के सामने एक झुंड खूखार कुत्तों के बीच पड़ी एक छोटी-सी बिल्ली के चेहरे की तरह माया का चेहरा उभर आता है। सुरंजन तेजी से निकल जाता है। जाते-जाते सुधामय के निष्क्रिय हाथ को पकड़कर कहता है, ‘माया को किसी भी तरह वापस ले आऊँगा पिताजी।'

सुरंजन हैदर के घर का दरवाजा जोर-जोर से खटखटाता है। इतनी जोर से कि हैदर खुद आकर दरवाजा खोलता है।

सुरंजन को देखकर चौंक उठता है। कहो, 'क्या बात है? तुम्हें क्या हुआ पहले तो सुरंजन कुछ कह नहीं पाता। उसके गले में ढेर सारा दर्द अटका हुआ है।

'माया को उठा ले गये हैं', कहते हुए सुरंजन का गला फँस रहा है। उसे और समझाने की जरूरत नहीं हुई कि माया को कौन लोग उठा ले गये।

'कब ले गये?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book