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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


सुरंजन लेटे-लेटे सिर उठाकर कहता है, 'रेडियो, टी. वी. पर गीता से पाठ किये जाने पर आप खुश होंगे? मंदिरों का निर्माण होने पर क्या बहुत कल्याण होगा? 21वीं शताब्दी आने को है, हम आज भी समाज, राष्ट्र में धर्म का प्रवेश चाह रहे हैं। इससे अच्छा होगा यदि आप लोग कहें कि राष्ट्रनीति, समाजनीति, शिक्षा नीति आदि धार्मिक घुसपैठ से मुक्त रहें। संविधान में धर्मनिरपेक्षता चाहते हैं, इसका मतलब तो यह नहीं कि कुरान पढ़ने पर गीता भी पढ़ना होगा। हमें चाहना यह होगा कि समस्त राष्ट्रीय कार्य-कलापों में धार्मिक प्रवेश रुके। स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी में कोई धार्मिक अनुष्ठान, धार्मिक प्रार्थना, पाठ्य-पुस्तकों में राजनैतिक नेताओं की भागीदारी को प्रतिबंधित करना होगा। यदि कोई नेता धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेता है या आयोजन में सहायता करता है तो उसे दल से बहिष्कृत किया जायेगा। सरकारी प्रचार माध्यमों से धार्मिक प्रचार को निषिद्ध करना होगा। किसी भी आवेदन पत्र में प्रार्थी का धर्म क्या है, नहीं पूछा जायेगा।'
 
सुरंजन की बातें सुनकर काजल देवनाथ हँसने लगे। बोले, 'तुम भावना में कुछ ज्यादा बहे जा रहे हो। एक सेकुलर देश में तुम्हारी भावनाएँ चल सकती हैं, इस देश में नहीं चलेंगी।"

सुभाष कुछ बोलने के लिए छटपटा रहा था, मौका पाते ही बोला, आज बांग्लादेश छात्र-युवा एकता परिषद की ओर से प्रेस क्लब के सामने मीटिंग किया, गृह मंत्री को ज्ञापन दिया। जिसमें क्षतिग्रस्त मंदिरों का पुनर्निर्माण, क्षतिग्रस्त घरों की क्षतिपूर्ति राशि, असहायों को मदद व पुनर्वास और दोषी व्यक्तियों को सजा देने व साम्प्रदायिक राजनीति पर रोक लगाने की माँग है।'

सुरंजन कुशन पर सिर रखकर लेटा हुआ था। उठकर बोला, 'तुम्हारी एक भी माँग सरकार नहीं मानेगी।'

कबीर चौधरी ने कहा, 'हाँ क्यों मानेंगे? वह तो पूरा-पूरा दरबारी है। सुना है, यह आदमी इकहत्तर में कानपुर ब्रिज पर खड़ा रहकर पाकिस्तानी कैम्प का पहरा देता था।

सईदुर रहमान ने कहा, 'उस जैसे दरबारी ही तो अब सत्ता में हैं। शेख मुजीब ने इन लोगों को क्षमा किया, जियाउर रहमान ने सत्ता में बैठाया। इरशाद ने इन्हें और भी शक्तिशाली बनाया। और खालिद जिया सीधे इन दरबारियों के जरिये गद्दी पर बैठी हैं।

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