जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
'क्या बात है? काफी हिन्दुओं का जमघट है।'
सुरंजन की बातों पर कोई नहीं हँसा, बल्कि वह खुद ही हँस पड़ा।
'क्या बात है, तुम सब इतने उदास क्यों हो? हिन्दुओं को मारा जा रहा है इसलिए?' सुरंजन ने पूछा।
'सुभाष ने कहा, 'उदास न होने का भी कोई कारण है?'
काजल देवनाथ 'हिन्दू, बौद्ध, क्रिश्चियन ऐक्य परिषद' में है। सुरंजन ने कभी इस परिषद का समर्थन नहीं किया। उसे लगा था कि यह भी एक साम्प्रदायिक दल है। इस दल का समर्थन करने पर धर्म के आधार पर राजनीति पर रोक लगाने का दावा उतना नहीं रह जाता। इस बात पर काजल ने कहा, 'चालीस वर्षों तक प्रत्याशा प्रतीक्षा में रहने के बाद निराश होकर अंततः आत्मरक्षा स्वनिर्भरता के कारण इस परिषद का गठन किया है।
‘खालिदा ने क्या एक बार भी स्वीकारा है कि देश में साम्प्रदायिक हमला हुआ है? वे तो एक बार भी इलाकों को देखने नहीं गयीं।' महफिल के एक व्यक्ति द्वारा यह बात कहे जाने पर काजल ने कहा अवामी लीग ने ही क्या किया? विवरण दिया है। ऐसा विवरण 'जमाते-इस्लामी' ने भी पहले दिया है। पिछले चुनाव में अवामी लीग जब सत्ता में आयी तो संविधान में बिसमिल्लाह नहीं रहेगा', कहकर एक तरह की अफवाह उड़ी थी। अब जब उन्हें सत्ता नहीं मिली, तब सोचा, आठवें एमेंडमेंट के विरुद्ध बातें करने पर लोकप्रियता घट जायेमी। अवामी लीग क्या चुनाव में जीतना चाहती है? या फिर नीतियों पर अटल रहना चाहती है? यदि अटल है तो फिर इस बिल के विरुद्ध कुछ क्यों नहीं कहा, किया?'
‘सोचा होगा, पहले सत्ता में तो चली आऊँ, फिर जो परिवर्तन करने की जरूरत होगी, किया जायेगा। साईदुर रहमान ने अवामी लीग के पक्ष में तर्क खड़ा किया।
'किसी का भरोसा नहीं। सभी सत्ता में जाकर इस्लाम का गुण गायेंगे और भारत का विरोध करेंगे। इस देश में भारत का विरोध और इस्लाम, लोगों को जल्दी आकर्षित करता है।' काजल फिर सिर हिलाकर कहता है।
अचानक सुरंजन उनकी चर्चा में न जाकर अपना पुराना सवाल दोहराता है, 'काजल भैया, इस साम्प्रदायिक परिषद का गठन न करके असाम्प्रदायिक लोगों का एक दल बनाने से अच्छा नहीं होता? क्या मैं जान सकता हूँ कि इस परिषद में साईदुर रहमान क्यों नहीं हैं?'
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