जीवन कथाएँ >> लज्जा लज्जातसलीमा नसरीन
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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...
यतीन चक्रवर्ती अपनी भारी-भरकम आवाज में बोले, 'साईदुर रहमान को शामिल न कर पाना हमारी असफलता नहीं है। असमर्थता उन लोगों की है, जिन्होंने राष्ट्रधर्म का निर्माण किया है। इतने दिनों तक तो हमें इस तरह की परिषद बनाने की जरूरत नहीं पड़ी, अब क्यों पड़ रही है? बांग्लादेश का निर्माण यूँ ही नहीं हो गया। हिन्दू, बौद्ध, क्रिश्चियन, मुसलमान सभी का इसमें समान त्याग है। लेकिन किसी एक धर्म को राष्ट्रधर्म घोषित करने का अर्थ होता है, दूसरे धर्म के व्यक्तियों के मन में अलगाववाद को जन्म देना। स्वदेश के प्रति प्यार किसी से किसी का कम नहीं है, लेकिन जो लोग देखते हैं कि इस्लाम उनका धर्म न होने के कारण राष्ट्र की नजरों में उनका पैतृक धर्म द्वितीय या तृतीय श्रेणी के नागरिक में परिणत हो गया है, तब उनको जबर्दस्त ठेस लगती है। इस कारण यदि उनके अन्दर राष्ट्रीयतावाद के वदले साम्प्रदायिकता की चेतना प्रबल होती है, तो उन्हें दोष कैसे दिया जा सकता है?'
चूँकि सवाल सुरंजन से किया गया था, इसलिए सुरंजन धीमी आवाज में बोले, 'लेकिन आधुनिक राष्ट्र में इस तरह के साम्प्रदायिक आधार पर गठित एक संगठन के रहने का कोई तुक नहीं।'
यतीन चक्रवर्ती तुरंत ही देर न करते हुए बोले, 'लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस तरह का संगठन बनाने के लिए कौन बाध्य कर रहा है? जो राष्ट्रीय धर्म के प्रवक्ता हैं, क्या वे नहीं? एक विशेष सम्प्रदाय के 'रिलीजन' को राष्ट्रधर्म बनाने से वह राष्ट्र तो सांस्कृतिक राष्ट्र नहीं रह जाता। जिस राष्ट्र का कोई राष्ट्र धर्म हो, वह राष्ट्र किसी भी समय धार्मिक राष्ट्र घोषित हो सकता है। यह राष्ट्र तीव्र गति से साम्प्रदायिक राष्ट्र हो रहा है, यह राष्ट्रीय एकता की बातें करना हास्यास्पद है। 'आठवाँ एमेंडमेंट' दरअसल बंगालियों को ठेंगा दिखाना है-अल्पसंख्यक लोग इस बात को अच्छी तरह समझते हैं, क्योंकि वे भुक्तभोगी हैं।'
क्या आपको लगता है कि राष्ट्र धर्म इस्लाम होना, या धार्मिक राष्ट्र घोषित होना मुसलमानों के लिए हितकर होगा? मुझे ऐसा नहीं लगता।'
'अवश्य ही नहीं होगा। इस बात को वे लोग आज भले ही नहीं समझ पायें, एक दिन समझेंगे।'
अंजन ने कहा, 'अवामी लीग इस वक्त अच्छी भूमिका निभा सकती थी।' सुरंजन ने कहा, 'हाँ, अवामी लीग के बिल में भी आठवें संशोधन के बहिष्कार का प्रस्ताव नहीं है। कोई भी आधुनिक प्रजातांत्रिक व्यक्ति अच्छी तरह जानता है कि गणतंत्र की अपरिहार्य शर्त है धर्म-निरपेक्षता। मेरी तो समझ में नहीं आता कि जिस देश की जनसंख्या का 86 प्रतिशत मुसलमान है, उस देश में इस्लाम को राष्ट्र धर्म बनाने की क्या जरूरत है। बांग्लादेश के मुसलमान तो यूँ ही धर्म का पालन करते हैं, उनके लिए राष्ट्र धर्म की घोषणा करने की क्या जरूरत।' यतीन बाबू हिल-डुलकर बैठते हुए बोले, 'सिद्धांत के मामले में कोई समझौता नहीं होता। उसके विरुद्ध कुप्रचार हो रहा है, ऐसा कहकर अवामी लीग एक तरह का समझौता कर रही है।'
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