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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


नब्बे में पटुवाटुली के ब्रह्म समाज, शांखारी बाजार के श्रीधर विग्रह मंदिर, नया बाजार के प्राचीन मठ, कायतेटुली के साँप मंदिर को लूटकर तोड़-फोड़ की गयी और आग लगा दी। पटुवाटोला की प्रसिद्ध दुकान एम. भट्टाचार्य एण्ड कम्पनी, होटल राज, ढाकेश्वरी ज्वैलर्स, एवरग्रीन ज्वैलर्स, न्यू घोष ज्वैलर्स, अल्पना ज्वैलर्स, कश्मीरी बिरियानी हाउस, रूपश्री ज्वैलर्स, मिताली ज्वैलर्स, शांखारी बाजार का सोमा स्टार, अनन्या लाण्ड्री, कृष्णा हेयर ड्रेसर, टायर-ट्यूब रिपेयरिंग, साहा कैण्टीन, मदरघाट का भासमान होटल, 'उजाला' पंथ निवास आदि को लूटकर जला दिया। नया बाजार में म्यूनिसिपैलिटी की स्वीपर कालोनी को लूटकर आग लगा दी गयी। ढाका जिला अदालत की स्वीपर बस्ती को पूरा जला दिया गया। केरानीगंज का चुनकुटिया पूर्वपाड़ा हरिसभा मंदिर, काली मंदिर, मीर बाग का दुर्गा मंदिर, चन्द्रानिकार का मंदिर, पश्चिम पाड़ा का काली मंदिर, श्मशान घाट, तेघटिया पूबनदीप रामकनाई मन्दिर, कालिन्दी बाड़ीशुर, बाजार दुर्गा मंदिर, काली मंदिर, मनसा मंदिर आदि पर हमला हुआ, लूट-पाट हुई और मूर्तियों को तोड़ा गया। शुभट्टा खेजुरबाग के पैरीमोहन मिश्र का लड़का रवि मिश्र के मकान समेत पचास किराये के घरों में आग लगा दी गयी। तेघरिया के भवतोष घोष, परितोष घोष कालिन्दी के मन्दाइल हिन्दूवाड़ा में और बनगाँव ऋषिपाड़ा में तीन सौ घरों को लूटकर तोड़-फोड़ करके आग लगा दी गयी। इनमें से कुछ तो सुरंजन ने देखा है और कुछ सुना है।

सुरंजन किधर जायेगा, ठीक से समझ नहीं पाया। इस ढाका शहर में उसका अपना कौन है? किसके पास जाकर थोड़ी देर के लिए बैठेगा, बातें करेगा? आज माया ने उसे 'नहीं दूंगी' कहकर भी सौ रुपये का नोट दिया है। उसके शर्ट की पॉकेट में वह नोट पड़ा हुआ है। खर्च करने का मन हुआ। एक-दो बार सोचा कि एक पैकेट 'बांग्ला फाइव' खरीदे लेकिन खरीदने पर ही रुपया खत्म हो जायेगा रुपये का मोह उसने कभी नहीं किया। सुधामय उसे शर्ट-पैंट के लिए पैसे देते थे, उस पैसे को वह यार-दोस्तों में खर्च कर देता था। कोई भागकर शादी करना चाहता है, उसके पास पैसा नहीं है, सुरंजन उसकी शादी का खर्चा दे देता था। एक बार तो अपना परीक्षा-शुल्क तक रहमत नाम के एक लड़के को दे दिया था। उस लड़के की माँ अस्पताल में थी, दवा खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। बस, क्या था तुरंत सुरंजन ने अपनी परीक्षा की फीस का पैसा उसे दे दिया। क्या अभी एक बार वह रत्ना के पास जाये? रत्ना मित्र? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि शादी के बाद वह रत्ना का टाइटिल न बदले? लड़कियाँ क्यों शादी के बाद अपना टाइटिल बदल देती हैं? शादी से पहले पिता की पूँछ पकड़कर जिन्दा रहती हैं और शादी के बाद पति की, सब बकवास है। सुरंजन की भी इच्छा हुई कि वह अपने नाम के पीछे लगा 'दत्त' टाइटिल को हटा दे। मनुष्य का यह धर्म-जाति का भेद ही मनुष्य का विनाश कर रहा है। बंगाली चाहे वह 'हिन्दू' हो या 'मुसलमान' उसका नाम 'बंगाली' ही रखा जाए। कई बार उसने सोचा है माया का नाम 'नीलांजना माया' होने से अच्छा होता। और उसका नाम हो सकता था क्या हो सकता था 'विड़ि सुरंजन'? 'सुरंजना सुधा'? 'निखिल सुरंजन'? इस तरह का कुछ होने से धर्म की कालिख लगानी नहीं पड़ेगी।

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