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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


यानी बांग्लादेश के डेढ़-दो करोड़ नागरिकों का जिस कृषिहीन जमीन पर अधिकार है उसे नीलामी के जरिये लम्बे समय तक के लीज पर देने का पक्का इन्तजाम किया गया है। निर्देश के अनुच्छेद-37 में यह भी कहा गया है कि तहसील दफ्तर के जो तहसीलदार या कर्मचारी अपने-अपने इलाके की गुप्त अर्पित सम्पत्ति का पता लगायेंगे या उससे संबंधी खबरें देंगे, उन्हें पुरस्कृत किया जायेगा। अनुच्छेद38 में और भी कहा गया है कि इस काम में नियोजित अतिरिक्त जिला प्रशासक (राजस्व) एवं भूमि प्रशासक और भूमि विकास विभाग के कर्मचारियों को पुरस्कार पाने के लालच में इन लोगों ने अर्पित सम्पत्ति ढूँढ़ निकालने के नाम पर हिन्दुओं को उनके घरों से या उनके हक की जमीन से उन्हें जबदरदस्ती बेदखल कर दिया।

1966 के बाद पूर्व पाकिस्तान सरकार ने सम्पूर्ण देश की पैमाइश करायी। इससे पता चला कि 1947 के देश त्याग और 1950 और 1954 के दंगों के बाद जो अपनी सम्पत्ति की देखरेख एवं संरक्षण का दायित्व अपने परिवार के सदस्य, साझेदार या दूसरे रिश्तेदारों या किसी अन्य को देकर भारत चले गये सिर्फ उनके मकान, पोखर, बगीचा, पारिवारिक श्मशान, मैदान, मंदिर, खेत तथा अन्य जमीनें शत्रु के रूप में सूचीबद्ध होती हैं। इसके अलावा जो हिन्दू भारत में गये, भारत के अलावा विदेश में अस्थायी रूप में रहते हैं या अस्थायी रूप में भारत में ही रहते हैं, उनकी सम्पत्ति को भी ‘शत्रु सम्पत्ति' के अन्तर्गत लाया गया। लेकिन जो मुसलमान भारत या भारत के बाहर चले गये हैं, उनकी सम्पत्ति को 'शत्रु सम्पत्ति' के अधीन नहीं रखा गया। इसके लिए कोई पैमाइश भी नहीं करायी गई। हिन्दू संयुक्त परिवारों के नियमानुसार, परिवार के अनुपस्थित सदस्यों की सम्पत्ति की मिल्कियत संयुक्त परिवार के सरवाइविंग सदस्य को सौंपी जायेगी तथा वे उसका उपभोग करेंगे। लेकिन ऐसी सम्पत्ति पर भी सरकारी दखल हो गया है।

सुधामय ने सोचा नियाज हुसैन, फजलुल आलम, अनवर अहमद परिवार सहित उनकी आँखों के सामने लंदन-अमेरिका चले गये। देश के उनके मकान पर दूर के रिश्तेदार रह रहे हैं, किसी ने केयर टेकर रखा है तो किसी ने भाड़े पर दे रखा है और किसी के जरिये भाड़ा वसूल कर लेते हैं। उनकी सम्पत्ति को तो शत्रु सम्पत्ति नहीं कहा जाता। सुधामय ने खड़ा होना चाहा, उनको पसीना छूट रहा है। कोई भी घर पर नहीं है, माया, किरणमयी, सब कहाँ चले गये?

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