नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
इस तरह ब्याह कर गंगा को,
राजा थे हुए प्रसन्न बहुत,
ले कर आए वे राजमहल,
साम्राज्ञी बना, ब्रह्मास्थल की॥30॥
दिन लगे बीतने खुशियों से,
अधिकांश समय था बीत गया,
जाह्नवी हुई थी गर्भवती,
समयानुसार जन्मा था सुत॥31॥
पर रानी ले उसको सुरसरि-
में, जाकर फेंका उसी समय,
बोली, हे वत्स ! प्रसन्न रहो,
तुम शाप मुक्त हो जाओगे॥32॥
इस तरह सात पुत्रों ने ले-
कर जन्म, कुक्षि से गंगा के,
थे फेंके गए नदी जल में,
देने को मुक्ति श्राप से उस॥33॥
यद्यपि थे राजा असन्तुष्ट,
रानी की ऐसी हरकत पर,
पर भय से पूछ न पाते थे,
तब रानी देती छोड़ उन्हें॥34॥
जब जन्म हुआ आठवाँ तनय,
राजा अति दुख से कातर हो,
बोले रानी से, री दुष्टे,
होती न तुझे वेदना तनिक॥35॥
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