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देवव्रत

त्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16642
आईएसबीएन :978-1-61301-741-8

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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य



हे परम सुन्दरी! कौन आप,
किसलिए यहाँ विचरण करतीं?
है क्या अभीष्ट हे वर नारी,
कृपया बतलाएँ आप मुझे ?॥18॥

आ रही याद बातें मुझको,
जो कहा पिता ने था मुझसे,
वर नारी के दर्शन होंगे,
तब देव सभी आशीषेंगे॥19॥

है सफल हुई वाणी पितु की,
वह वर नारी हैं आप स्यात्,
कहिए, क्या प्रिय मैं करूँ सुमुखि,
जिससे होवें देवी प्रसन्न॥20॥

है मेरी तीव्रेच्छा सुन्दरि,
यदि आप समझती पात्र मुझे,
फेरे लेकर मैं आप सहित,
पत्नी का दर्जा दूँ आर्ये॥21॥

फिर भी यदि कोई अन्याशय,
संकोचहीन हो कह सकतीं,
होगी अशिष्टता नहीं कोई-
मेरे द्वारा हे मृगनयनी!॥22॥

सुनकर मीठी वाणी नृप की,
वह यौवन वती प्रसन्न हुई,
हो गई खड़ी थी आ करके,
शान्तनु के निकट त्याग व्रीडा॥23॥

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