नई पुस्तकें >> देवव्रत देवव्रतत्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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भीष्म पितामह के जीवन पर खण्ड-काव्य
पहले ही समझाकर उसको,
सारी घटना बतलाऊँगा,
जिससे न रहे संशय कोई,
वह देख तुम्हें पहचानेगा॥12॥
सुन सारी बातें नरपति से,
थी अन्तर्ध्यान हुई बाला,
एवं थी पूर्ण प्रतीक्षारत,
उस दिव्य पुरुष के आने की॥13॥
कालोपरान्त राजा प्रतीप,
थे बने पिता सुन्दर सुत के,
वह तेजस्वी, देदीप्यमान,
था परम दिव्य, सौभाग्यवान॥14॥
था महावीर, अतिशय बलिष्ठ,
आखेट-खेल में निपुण हुआ,
जाता प्रतिदिन गंगा-तट पर,
करने शिकार वन-जीवों का॥15॥
एक दिवस वह अकस्मात,
देखा अति सुन्दर वर कन्या,
वह शुभ्र वस्त्र में अच्छादित,
थी देह यष्टि पाटल जैसी॥16॥
भारत, शान्तनु ने देखा,
उस रूपवती रमणी को जब,
रोमाँच हुआ पूरा शरीर,
जा पास प्रश्न पूछा उससे॥17॥
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