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नाटक-एकाँकी >> दरिंदे

दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1987
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1454
आईएसबीएन :00000

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आधुनिक ज़िन्दगी की भागदौड़ में आज का आम आदमी ज़िन्दा रहने की कोशिश में कुचली हुई उम्मीदों के साथ जिस तरह बूँद-बूँद पिघल रहा है उस संघर्ष-यात्रा का जीवन्त दस्तावेज़ है यह नाटक


शेर : अभी तुमने कई जानवरों के नाम लिए। क्या तुम्हें हमसे कोई शिकायत है।
वि.दा. : हाँ, सहमा माहौल। पर चेहरा डरा हुआ। सब तरफ़ जंगल का राज।
शेर : आदमी के लिए आदमी का राज।
वि.दा. : हाँ, आदमी के लिए आदमी का राज। (हँसता है।)
शेर : तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता ?
वि.दा. : तुमसे ?
शेर : हाँ, मुझसे।
वि.दा. : तुमसे डरने-जैसी कोई बात नहीं है। मुझे तुमसे कोई खतरा नहीं हो सकता, क्योंकि न तुम्हारा कोई आदर्श है, न ही सिद्धान्त। कोई मजहब भी नहीं है, तुम्हारा। कोई राजनेता भी नहीं हो, तुम। फिर क्यों डरूँ ?
शेर : मैं आदमी को मार डालता हूँ।
वि.दा. : आदमी आदमी को मार डालता है। आदमी से तुम्हें डर नहीं लगता ?
शेर : जानता हूँ। आदमी बड़ा चालाक प्राणी है। अपनी हर कमज़ोरी को वह एक नाम दे देता है।
वि.दा. : जैसे ?
शेर : जब आदमी हमें मारता है, तो उसे खेल कहा जाता है। जब हम आदमी को मारते हैं, तो उसे पशुता कहा जाता है।
वि.दा. : समझदारी आदमी का गुण है।
शेर : समझदार आदमी युद्ध क्यों करता है ? कभी तुमने सुना कि पशुओं में कोई वर्ल्ड वार हुई ?
वि.दा. : युद्ध राजनीतिक विचारों की टकराहट है।
शेर : एक बात बताओ। बहुत दिनों से किसी आदमी से पूछने को सोच रहा था। आज तुम मिल गये।
वि.दा. : पूछो।
शेर : ये आये दिन इतनी लड़ाइयाँ होती हैं। इनमें हजारों आदमी मरते हैं। इन सबको आदमी खाता कैसे है ?
वि.दा : आदमी उन्हें खाने के लिए नहीं मारता।
शेर : फिर आदमी चाहता क्या है ? एक लड़ाई के बाद दूसरी लड़ाई। आदमी के हाथों आदमी की मौत। आदमी जानवर से ज़्यादा खतरनाक है।

(प्रकाश लुप्त होता है। अन्तरालयिक क्षणिक पार्श्वध्वनियाँ। कुत्ते के भौंकने की आवाज़। दुबारा प्रकाश आने पर एक व्यक्ति, जो शराब पिये हुए है, इस तरह मंच पर आता है मानो उसे धकेल दिया गया हो। वह किसी तरह सँभलकर खड़े होने की कोशिश करता है और एक कुत्ते को मंच पर उपस्थित मानकर उससे बातें करता है। कुत्ता बीच-बीच में कई बार भौंकता है, लेकिन दिखाई नहीं देता।)

शराबी : हरामी पिल्ले, आदमी को देखकर भौंकता है। नमक हराम ! आज कुछ देने को नहीं है, तो नहीं है। रोज़ डालता हूँ, उससे सब्र नहीं ? तू समझता है, मैं पिये हूँ। इसलिए भौंकता है। मैं पिये हुए नहीं हूँ। सभी नशे में बोलते हैं। भूँक मत। बिना मतलब कोई आश्वासन पूरे नहीं करता। क्या पूरे नहीं करता ? आश्वासन ! अपना काम देख अपनी पत्नी की फिक्र मत कर। उसे रोज़ पड़ोसी का टॉमी बहलाता है। चुप हो गया ! शाबास। यू आर ए वेरी गुड बोय, यू आर ए वेरी गुड बोय कुत्ते !... तो मैं क्या कह रहा था ? हाँ, आदमी शब्दों में बात करता है। शब्द, जो आश्वासन देते हैं। शब्द, जो प्यार जताते हैं। शब्द, जो नफरत जगाते हैं। (कुत्ता भौंकता है।) कुत्ते भौंकते हैं, तू कुत्ता थोड़े न है कुत्ते ! कारवाँ गुजरते हैं। चुनाव होते हैं। गरीब मरते हैं। अररेरे, पास आने की कोशिश मत कर। दूर रह। तेरे सामने आदमी का बहुत छोटा रूप है रे। हमारे सामने बड़ी-बड़ी योजनाएँ हैं। शोर मत कर। नेशनल एनाउन्समेन्ट सुन ! कोई चीज़ ब्लैक से मत खरीद। भूखा मर जा कुत्ते ! मर जा। तेरे ज़िन्दा रहने से ब्लैक मारकेट ज़िन्दा है। हम जानते हैं, चीज़ों का अभाव है। अनाज जानवरों से बचा। ज्ञान चूहों से। सब चाट जाते हैं।...अरे, तू मुझे आदमी की तरह नहीं, अपनी खुराक की तरह क्यों देख रहा है ? हड्डी के जैसे। किसी की दावत मत कर और करता है, तो वैसी कर जैसी लोमड़ी ने सारस की थी। किसने किसकी की थी ?...हाँ...कुत्ते, यू आर ए वेरी इण्टेलीजेन्ट बोय। मैं नहीं चाहता तुझे नुकसान पहुँचे, कुत्ते। मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, बेटे। तुझमें बड़ा धैर्य है।

आत्मविश्वास है। मैं तेरे पास आता हूँ। काट मत लेना। तुझे बहलाने के लिए आज मेरे पास सिर्फ शब्द हैं। तेरी तारीफ के लिए शब्द। प्यार-भरे शब्द। शब्द, शब्द और शब्द !..
टामी, टामी, टामी, टामी......

(शराबी मंच से बाहर चला जाता है। प्रकाश क्षीण होता है। हलकी पार्श्वध्वनियाँ। शेर और दार्शनिक पर प्रकाश और एक चीख़)

शेर : यह चीख सुनी ?
वि.दा. : हमारी आवाज़, तुम्हारी आवाज़, सबकी आवाज़ इस अन्धकार में एक चीख़ है।
शेर : लेकिन हर चीख़ की कोई वजह है।
वि.दा. : कमज़ोरी पर ताकत की जीत।
शेर : यह किसी स्त्री की चीख़ थी।

वि.दा. : फिर किसी वहशी ने किसी स्त्री की कमज़ोरी का फ़ायदा उठाया होगा। जानवर !
शेर : जानवर बलात्कार के क़ायल नहीं। क्या तुमने कभी सुना कि किसी लोमड़ी का शीलभंग हुआ ? क्या तुमने कभी किसी कबूतर को घण्टों अपनी प्रेमिका के सामने गुटरगूँ, गुटरगूँ करते नहीं देखा ? जंगल में मोर को मोरनी के सामने नाचते नहीं देखा ? किसी हिरन को हिरनी की आँखों में आँखे डालकर प्रेमप्रलाप करते नहीं देखा ? कहीं कोई ओछापन है उनके सम्बन्धों में।

(पार्श्व में वही चीख फिर सुनायी देती है। शेर और दार्शनिक चीख की दिशा में विंग्स में दौड़ जाते हैं प्रकाश लुप्त। दृश्यों को जोड़ने वाला पार्श्वसंगीत।
पुनः प्रकाश आने पर स्त्री का प्रवेश, जो इस एकांश में पत्नी, माँ और पर-स्त्री की भूमिकाओं में है।
स्त्री द्वारा कपड़े सुखाने का मूकाभिनय।
पुरुष का प्रवेश, जो इस एकांश में पिता, पुत्र और पर-पुरुष की भूमिका में है।)

बूढ़ा : बजरिया मा कउनों चिजिया नाहीं मिलत। पिये का एक सिगरेट तक नाहीं।
बूढ़ी : राम जाने का होई गवा है बाज़ार का ? दाम आसमान छुअत हैं।
बूढ़ा : अरे हमार का होई सिगरेट बिना ?
बूढ़ी : राहुल आवत होई। ओहसे ले लिहो।
बूढ़ा : उह तो खुदे माँग रहा हमसे सबेरे।
बूढ़ी : का ? हे भगवान, कइस कलजुग आय गवा है ? बेटा बाप से सिगरेट माँग के पिये लाग है। हमार तो कुछ समझ में नहीं आवत।
बूढ़ा : (चिलम पीने का मूकाभिनय करता हुआ) ऊँह। ई भी भुज गयी। दो-चार अंगार लाके डाले तो।
बूढ़ी : देखत नाहीं, हम काम करत है।
बूढ़ा : देइदे रामकली, देइदे।
बूढ़ी : अच्छा, अच्छा। अभी लावत है। (पॉज़)
बूढ़ा : ऊ का कहत रहीं तुम ?
बूढ़ी : हम कहत रहीं कि हमें इस कलजुग की बात कछु समझ नाहीं आवत।

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