परिवर्तन >> दरिंदे दरिंदेहमीदुल्ला
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एक समसामयिक नाटक...
आधुनिक ज़िन्दगी की भागदौड़ में आज का आम
आदमी ज़िन्दा रहने की कोशिश में कुचली हुई उम्मीदों के साथ जिस तरह बूँद-बूँद पिघल रहा है उस संघर्ष-यात्रा का जीवन्त दस्तावेज़ है यह नाटक-जिसे 9 दिसम्बर, 1973 को मावलंकर ऑडिटोरियम नयी दिल्ली में अ. भा. सर्वभाषा नाटक प्रतियोगिता
में प्रदर्शित किया गया और विभिन्न भारतीय भाषाओं के नाटकों में यह केवल
सर्वश्रेष्ठ ठहराया गया, बल्कि इसके निर्देशक तथा प्रमुख पुरुष एवं नारी
पात्रों को उनके कृतित्व के लिए प्रथम पुरस्कार भी भेंट किये गये।
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