लोगों की राय

उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

221 पाठक हैं



दो बड़े और छोटे कमरों का एक डाकबंगला था जिसे डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने छोड़ दिया था। उसके तीन ओर कच्ची दीवारों पर छप्पर डालकर कुछ अस्तबल वनाए गए थे। अस्तबलों से कुछ दूरी पर पक्की ईंटों की दीवार पर टिन डालकर एक दुकान-सी खोली गई थी। एक ओर रेलवे-फाटक के पास पायी जानेवाली एक कमरे की गुमटी थी। दूसरी ओर एक बड़े बरगद के पेड़ के नीचे एक कब्र-जैसा चबूतरा था। अस्तबलों के पास एक नये ढंग की इमारत बनी थी जिस पर लिखा था, 'सामुदायिक मिलन-केन्द्र, शिवपालगंज।' इस सबके पिछवाड़े तीन-चार एकड़ का ऊसर पड़ा था जिसे तोड़कर उसमें चरी बोई गई थी। चरी कहीं-कहीं सचमुच ही उग आयी थी।

इन्हीं सब इमारतों के मिले-जुले रूप को छंगामल विद्यालय इंटरमीजिएट कॉलिज, शिवपालगंज कहा जाता था। यहाँ से इंटरमीजिएट पास करनेवाले लड़के सिर्फ़ इमारत के आधार पर कह सकते थे कि हम शांतिनिकेतन से भी आगे हैं; हम असली भारतीय विद्यार्थी हैं; हम नहीं जानते कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है, पक्का फ़र्श किसको कहते हैं; सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है। हमने विलायती तालीम तक देसी परम्परा में पायी है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं ! हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है, बन्द कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।

छंगामल कभी जिला-बोर्ड के चेयरमैन थे। एक फर्जी प्रस्ताव लिखवाकर उन्होंने बोर्ड के डाकबंगले को इस कॉलिज की प्रबन्ध-समिति के नाम उस समय लिख दिया था जब कॉलिज के पास प्रबन्ध-समिति को छोड़कर और कुछ नहीं था। लिखने की शर्त के अनुसार कॉलिज का नाम छंगामल विद्यालय पड़ गया था।

विद्यालय के एक-एक टुकड़े का अलग-अलग इतिहास था। सामुदायिक मिलन-केन्द्र गाँवसभा के नाम पर लिये गए सरकारी पैसे से बनवाया गया था। पर उसमें प्रिंसिपल का दफ्तर था और कक्षा ग्यारह और बारह की पढ़ाई होती थी। अस्तबल-जैसी इमारतें श्रमदान से बनी थीं। टिन-शेड किसी फौजी छावनी के भग्नावशेषों को रातोंरात हटाकर खड़ा किया गया था। जुता हुआ ऊसर कृषिविज्ञान की पढ़ाई के काम आता था। उसमें जगह-जगह उगी हुई ज्वार प्रिंसिपल की भैंस के काम आती थी। देश में इंजीनियरों और डॉक्टरों की कमी है। कारण यह है कि इस देश के निवासी परम्परा से कवि हैं। चीज को समझने के पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते हैं। भाखड़ा-नंगल बाँध को देखकर वे कह सकते हैं, "अहा ! अपना चमत्कार दिखाने के लिए, देखो, प्रभु ने फिर से भारत-भूमि को ही चुना।" ऑपरेशन-टेबल पर पड़ी हुई युवती को देखकर वे मतिराम-बिहारी की कविताएँ दुहराने लग सकते हैं।

भावना के इस तूफान के बावजूद, और इसी तरह की दूसरी अड़चनों के वावजूद, इस देश को इंजीनियर पैदा करने हैं, डॉक्टर बनाने हैं। इंजीनियर और डॉक्टर तो असल में वे तब होंगे जब वे अमरीका या इंगलैण्ड जाएंगे, पर कुछ शुरुआती काम-टेक-ऑफ़ स्टेजवाला-यहाँ भी होना है। वह काम भी छंगामल विद्यालय इंटर कॉलिज कर रहा था।

साइंस का क्लास लगा था। नवाँ दर्जा। मास्टर मोतीराम, जो एक तरह बी. एस-सी. पास थे, लड़कों को आपेक्षिक घनत्व पढ़ा रहे थे। बाहर उस छोटे-से गाँव में छोटेपन की, बतौर अनुप्रास, छटा छायी थी। सड़क पर ईख से भरी बैलगाड़ियाँ शकर मिल की ओर जा रही थीं। कुछ मरियल लड़के पीछे से ईख खींच-खींचकर भाग रहे थे। आगे बैठा हुआ गाड़ीवान खींच-खींचकर गालियाँ दे रहा था। गालियों का मौलिक महत्त्व आवाज की ऊँचाई में है, इसीलिए गालियाँ और जवाबी गालियाँ एक-दूसरे को ऊँचाई पर काट रही थीं और दर्जे में खिड़की के रास्ते घुसकर पार्श्व-संगीत का काम कर रही थीं। लड़के नाटक का मजा ले रहे थे, साइंस पढ़ रहे थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book