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उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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इस पंचतन्त्र के पीछे वही भय था : आज जो वाइस-प्रिंसिपल होना चाहता है वह कल प्रिंसिपल चाहेगा। इसके लिए वह प्रबन्ध-समिति के मेम्बरों को अपनी ओर तोड़ेगा। मास्टरों का गुट बनाएगा। लड़कों को मारपीट के लिए उकसाएगा। ऊपर शिकायतें भिजवाएगा। वह कमीना है और कमीना रहेगा।

सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से,
कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से।

इस कविता को ऊपर दर्ज करके रामाधीन भीखमखेड़वी ने वैद्यजी को जो पत्र लिखा था, उसका आशय था कि प्रबन्ध-समिति की बैठक, जो पिछले तीन साल से नहीं हुई है, दस दिन में बुलायी जानी चाहिए और कॉलिज की साधारण समिति की सालाना बैठक-जो कि कॉलिज की स्थापना के साल से अब तक नहीं हुई है के बारे में वहाँ विचार होना चाहिए। उन्होंने विचारणीय विषयों में वाइस-प्रिंसिपल की तक़र्रुरी का भी हवाला दिया था।

प्रिंसिपल साहब जब यह पत्र अपनी जेब में डालकर वैद्यजी के घर से बाहर निकले तो उन्हें अचानक उससे गर्मी-सी निकलती महसूस हुई। उन्हें जान पड़ा कि उनकी कमीज झुलस रही है और गर्मी की धाराएँ कई दिशाओं में बहने लगी हैं। एक धारा उनके कोट को झुलसाने लगी, दूसरी कमीज के नीचे से निकलकर उनकी पेण्ट के अन्दर घुस गई और उसके कारण उनके पैर तेजी से बढ़ने लगे। एक तीसरी धारा उनके आँख, कान और नाक पर लाल पालिश चढ़ाती हुई खोपड़ी के उस गड्ढे की ओर बढ़ने लगी जहाँ कुछ आदमियों के दिमाग हुआ करता है।

कॉलिज के फाटक पर ही उन्हें रुप्पन बाबू मिल गए और उन्होंने रुककर कहना शुरू किया, “देख लिया तुमने ? खन्ना रामाधीन का झूटा पकड़कर बैठे हैं। वाइस- प्रिंसिपली का शौक चर्राया है। एक बार एक मेंढक ने देखा कि घोड़े के नाल ठोंकी जा रही है तो उसने भी..."

रुप्पन बाबू कॉलिज छोड़कर कहीं बाहर जा रहे थे और जल्दी में थे। बोले, "जानता हूँ। मेंढकवाला किस्सा यहाँ सभी को मालूम है। पर मैं आपसे एक बात साफ़-साफ़ बता दूँ। खन्ना से मुझे हमदर्दी नहीं है, पर मैं समझता हूँ कि यहाँ एक वाइस-प्रिंसिपल का होना जरूरी है। आप नहीं रहते तो यहाँ सभी मास्टर कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ते हैं। टीचर्स-रूम में वह गुण्डागर्दी होती है कि क्या वतायें । वही हे-हें, ठे-ठे, फें-फें।" वे गम्भीर हो गए और आदेश के ढंग से कहने लगे, "प्रिंसिपल साहब, मैं समझता हूँ कि हमारे यहाँ एक वाइस-प्रिंसिपल भी होना चाहिए। खन्ना सबसे ज्यादा सीनियर हैं। उन्हीं को वन जाने दीजिए। सिर्फ नाम की बात है, तनख्वाह तो बढ़नी नहीं है।"

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