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राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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इस वातावरण में लोगों की निगाह प्रिंसिपल साहब और वैद्यजी पर पड़ी थी। वैद्यजी तो अपनी जगह मदनमोहन मालवीय-शैली की पगड़ी बाँधे हुए इत्मीनान से बैठे थे, पर प्रिंसिपल साहब को देखकर लगता था कि वे बिना किसी सहारे के बिजली के खम्भे पर चढ़े हुए और दूर से ही किसी को देखकर चीख रहे हैं : 'देखो, देखो, वह कोई शरारत करना चाहता है।' उनकी निगाह में सन्देह था और अपनी जगह पर चिपके हुए प्रत्येक भारतवासी का यह भय था कि कोई हमें खींचकर हटा न दे। लोग कमजोरी ताड़ गए और उनको, और उसी लपेट में वैद्यजी को लुलुहाने लगे। उधर वे लोग भी मार न पड़ जाए, इस डर से पहले ही मारने पर आमादा हो गए।

उन्हीं दिनों एक दिन खन्ना मास्टर को किसी ने बताया कि हर कॉलिज में एक प्रिंसिपल और एक वाइस-प्रिंसिपल होता है। वे इतिहास पढ़ाते थे और कॉलिज के सबसे बड़े लेक्चरार थे। इसी धोखे में वे एक दिन वैद्यजी से कह आए कि उन्हें वाइस-प्रिंसिपल बनाया जाना चाहिए। वैद्यजी ने सिर हिलाकर कहा कि यह एक नवीन विचार है, नवयुवकों को नवीन चिन्तन करते ही रहना चाहिए, उनके प्रत्येक नवीन विचार का मैं स्वागत करता हूँ, पर यह प्रश्न प्रबन्ध-समिति के देखने का है, उसकी अगली बैठक में यदि यह प्रश्न आया तो इस पर समुचित विचार किया जाएगा। खन्ना मास्टर ने यह नहीं सोचा कि प्रबन्ध-समिति की अगली बैठक कभी नहीं होती। उन्होंने तत्काल वाइस-   प्रिंसिपल का पद पाने के लिए एक दरख्वास्त लिखी और प्रिंसिपल को इस प्रार्थना के साथ दे दी कि इसे प्रबन्ध-समिति की अगली बैठक में पेश कर दिया जाए।

प्रिंसिपल साहब खन्ना मास्टर की इस हरकत पर हैरान रह गए। उन्होंने वैद्यजी से जाकर पूछा, “खन्ना को यह दरख्वास्त देने की सलाह आपने दी है ?" इसका उत्तर वैद्यजी ने तीन शब्दों में दिया, “अभी नवयुवक हैं।"

इसके बाद कुछ दिनों तक प्रिंसिपल साहब शिवपालगंज के रास्ते पर मिलनेवाले हर आदमी से प्राणिशास्त्र का यह तथ्य बताते रहे कि आजकल के लोग न जाने कैसे हो गए हैं। खन्ना मास्टर की इस हरकत का वर्णन वे 'मुँह में राम बग़ल में छुरी,' 'हमारी ही पाली लोमड़ी, हमारे ही घर में हुआ-हुआ' (यद्यपि लोमड़ी 'हुआ-हुआ' नहीं करती), 'पीठ में छुरा भोंकना', 'मेंढक को जुकाम हुआ है' जैसी कहावतों के सहारे करते रहे। एक दिन उन्होंने चौराहे पर खड़े होकर प्रतीकवादी ढंग से कहा, “एक दिन किसी घोड़े के सुम में नाल ठोंकी जा रही थी। उसे देखकर एक मेंढक को शौक चर्राया कि हम भी नाल ठुकायेंगे। बहुत कहने पर नालवाले ने मेंढक के पैर में जरा-सी कील ठोंक दी। वस, मेंढक भाई वहीं ढेर हो गए। शौकीनी का नतीजा वुरा होता है।"

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