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उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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सिपाही लोग उत्साह से गड्ढे को घेरकर खड़े हो गए। दारोगाजी ने कहा, “कौन जोगनथवा ?"

एक पुराने सिपाही ने तजुर्बे के साथ कहना शुरू किया, “यह श्री रामनाथ का पुत्र जोगनाथ है। अकेला आदमी है। दारू ज्यादा पीता है।"

लोगों ने जोगनाथ को उठाकर उसके पैरों पर खड़ा किया, पर जो खुद अपने पैरों पर खड़ा नहीं होना चाहता उसे दूसरे कहाँ तक खड़ा करते रहेंगे। इसलिए वह लड़खड़ाकर एक बार फिर गिरने को हुआ, बीच में रोका गया और अन्त में गड्ढे के ऊपर आकर परमहंसों की तरह बैठ गया। बैठकर जब उसने आँखें मिला-मिलाकर, हाथ हिलाकर चमगादड़ों और सियारों की कुछ आवाजें गले से निकालकर अपने को मानवीय स्तर पर बात करने लायक बनाया, तो उसके मुँह से फिर वही शब्द निकले, “कौन है सफ़ौला ?" दारोगाजी ने पूछा, “यह बोली कौन-सी है ?"

एक सिपाही ने कहा, "बोली ही से तो हमने पहचाना कि जोगनाथ है। वह सफ़री बोली बोलता है। इस वक्त होश में नहीं है, इसलिए गाली बक रहा है।"

दारोगाजी शायद गाली देने के प्रति जोगनाथ की इस निष्ठा से बहुत प्रभावित हुए कि वह बेहोशी की हालत में भी कम-से-कम इतना तो कर ही रहा है। उन्होंने उसकी गरदन जोर से हिलाई और पकड़कर बोले, “होश में आ !"

पर जोगनाथ ने होश में आने से इंकार कर दिया। सिर्फ इतना कहा, “सफ़ळले!" सिपाही हँसने लगे। जिसने उसे पहले पहचाना था, उसने जोगनाथ के कान में चिल्लाकर कहा, “जफ़र्कोगनाथ, होश में अफ़ाओ।"

इसकी भी जोगनाथ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई; पर दारोग़ाजी ने एकदम से सर्फ़री बोली सीख ली। उन्होंने मुस्कराकर कहा, “यह साला हम लोगों को साला कह रहा है।"

उन्होंने उसे मारने के लिए अपना हाथ उठाया, पर एक सिपाही ने रोक लिया। कहा, “जाने भी दें हुजूर !"

दारोगाजी को सिपाहियों का मानवतावादी दृष्टिकोण कुछ पसन्द नहीं आ रहा था।

उन्होंने अपना हाथ तो रोक लिया, पर आदेश देने के ढंग से कहा, “इसे अपने साथ ले जाओ और हवालात में बन्द कर दो। दफ़ा 109 जाब्ता फ़ौजदारी लगा देना।"

एक सिपाही ने कहा, “यह नहीं हो पाएगा हुजूर ! यह यहीं का रहनेवाला है। दीवारों पर इश्तहार रंगा करता है और बात-बात पर सर्फ़री बोली बोलता है। वैसे बदमाश है, पर दिखाने के लिए कुछ काम तो करता ही है।"

वे लोग जोगनाथ को उठाकर उसे अपने पैरों पर चलने के लिए मजबूर करते हुए सड़क की ओर बढ़ने लगे। दारोगाजी ने कहा, “शायद पीकर गाली बक रहा है। किसी-न-किसी जुर्म की दफ़ा निकल आएगी। अभी चलकर इसे वन्द कर दो। कल चालान कर दिया जाएगा।"

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