उपन्यास >> राग दरबारी राग दरबारीश्रीलाल शुक्ल
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अंग्रेजों के जमाने में वे अंग्रेजों के लिए श्रद्धा दिखाते थे। देसी हुकूमत
के दिनों में वे देसी हाकिमों के लिए श्रद्धा दिखाने लगे। वे देश के पुराने
सेवक थे। पिछले महायुद्ध के दिनों में, जब देश को जापान से खतरा पदा हो गया
था, उन्होंने सुदूर-पूर्व में लड़ने के लिए बहुत से सिपाही भरती कराए। अब
जरूरत पड़ने पर रातोंरात वे अपने राजनीतिक गुट में सैकड़ों सदस्य भरती करा
देते थे। पहले भी वे जनता की सेवा जज की इजलास में जूरी और असेसर वनकर,
दीवानी के मुकदमों में जायदादों के सिपुर्ददार होकर और गाँव के जमींदारों में
लम्बरदार के रूप में करते थे। अब वे कोऑपरेटिव यूनियन के मैनेजिंग डायरेक्टर
और कॉलिज के मैनेजर थे। वास्तव में वे इन पदों पर काम नहीं करना चाहते थे
क्योंकि उन्हें पदों का लालच न था। पर उस क्षेत्र में जिम्मेदारी के इन कामों
को निभानेवाला कोई आदमी ही न था और वहाँ जितने नवयुवक थे, वे पूरे देश के
नवयुवकों की तरह निकम्मे थे; इसीलिए उन्हें बुढ़ापे में इन पदों को सँभालना
पड़ा था।
बुढ़ापा ! वैद्यजी के लिए इस शब्द का इस्तेमाल तो सिर्फ़ अरिथमेटिक की मजबूरी
के कारण करना पड़ा क्योंकि गिनती में उनकी उमर बासठ साल हो गई थी। पर
राजधानियों में रहकर देश-सेवा करनेवाले सैकड़ों महापुरुषों की तरह वे भी उमर
के बावजूद बूढ़े नहीं हुए थे और उन्हीं महापुरुषों की तरह वैद्यजी की यह
प्रतिज्ञा थी कि हम बूढ़े तभी होंगे जब कि मर जाएंगे और जब तक लोग हमें यक़ीन
न दिला देंगे कि तुम मर गए हो, तव तक अपने को जीवित ही समझेंगे और देश-सेवा
करते रहंग। हर बड़े राजनीतिज्ञ की तरह वे राजनीति से नफ़रत करते थे और
राजनीतिज्ञों का मजाक उड़ाते थे। गाँधी की तरह अपनी राजनीतिक पार्टी में
उन्होंने कोई पद नहीं लिया था क्योंकि वे वहाँ नये खून को प्रोत्साहित करना
चाहते थे; पर कोऑपरेटिव और कॉलिज के मामलों में लोगों ने उन्हें मजबूर कर
दिया था और उन्होंने मजबूर होना स्वीकार कर लिया था।
वैद्यजी का एक पेशा वैद्यक का भी था। वैद्यक में उन्हें दो नुस्खे खासतौर से
आते थे : 'गरीबों का मुफ्त इलाज' और 'फ़ायदा न हो तो दाम वापस' । इन नुस्खों
से दूसरों को जो आराम मिला हो वह तो दूसरी बात है, खुद वैद्यजी को भी आराम की
कमी नहीं थी।
उन्होंने रोगों के दो वर्ग बना रखे थे : प्रकट रोग और गुप्त रोग। वे प्रकट
रोगों की प्रकट रूप से और गुप्त रोगों की गुप्त रूप से चिकित्सा करते थे।
रोगों के मामले में उनकी एक यह थ्योरी थी कि सभी रोग ब्रह्मचर्य के नाश से
पैदा होते हैं। कॉलिज के लड़कों का तेजहीन, मरियल चेहरा देखकर वे प्रायः इस
थ्योरी की बात करने लगते थे। अगर कोई कह देता कि लड़कों की तन्दुरुस्ती गरीबी
और अच्छी खुराक न मिलने से बिगड़ी हुई है, तो वे समझते थे कि वह घुमाकर
ब्रह्मचर्य के महत्त्व को अस्वीकार कर रहा है, और चूँकि ब्रह्मचर्य को न
माननेवाला बदचलन होता है इसलिए गरीबी और खुराक की कमी की बात करनेवाला भी
बदचलन है।
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