उपन्यास >> राग दरबारी राग दरबारीश्रीलाल शुक्ल
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रंगनाथ ने यह सवाल अनसुना कर दिया और इसके जवाब में एक दूसरा सवाल किया, “अब
तुम किस दर्जे में पढ़ते हो रुप्पन ?"
उनकी शक्ल से लगा कि उन्हें यह सवाल पसन्द नहीं है। वे बोले, "टैन्थ क्लास
में हूँ...
"तुम कहोगे कि उसमें तो मैं दो साल पहले भी था। पर मुझे तो शिवपालगंज में इस
क्लास से बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ पड़ता।...
"तुम जानते नहीं हो दादा, इस देश की शिक्षा-पद्धति बिलकुल बेकार है।
बड़े-बड़े नेता यही कहते हैं। मैं उनसे सहमत हूँ... ।
"फिर तुम इस कॉलिज का हाल नहीं जानते। लुच्चों और शोहदों का अड्डा है।
मास्टर पढ़ाना-लिखाना छोड़कर सिर्फ पालिटिक्स भिड़ाते हैं। दिन-रात पिताजी की
नाक में दम किये रहते हैं कि यह करो, वह करो, तनख्वाह बढ़ाओ, हमारी गरदन पर
मालिश करो। यहाँ भला कोई इम्तहान में पास हो सकता है... ?
“हैं। कुछ बेशर्म लड़के भी हैं, जो कभी-कभी इम्तहान पास कर लेते हैं, पर
उससे...।"
कमरे में अन्दर वैद्यजी मरीजों को दवा दे रहे थे। अचानक वे वहीं से बोले,
"शान्त रहो रुप्पन। इस कुव्यवस्था का अन्त होने ही वाला है।'
जान पड़ा कि आकाशवाणी हो रही है : 'घबराओ नहीं वसुदेव, कंस का काल पैदा होने
ही वाला है।' रुप्पन बाबू शान्त हो गए। रंगनाथ ने कमरे की ओर मुँह करके जोर
से पूछा, “मामाजी, आपका इस कॉलिज से क्या ताल्लुक़ है ?"
"ताल्लुक़ ?" कमरे में वैद्यजी की हँसी बड़े जोर से गूंजी। “तुम जानना चाहते
हो कि मेरा इस कॉलिज से क्या सम्बन्ध है ? रुप्पन, रंगनाथ की जिज्ञासा शान्त
करो।"
रुप्पन ने बड़े कारोबारी ढंग से कहा, “पिताजी कॉलिज के मैनेजर हैं। मास्टरों
का आना-जाना इन्हीं के हाथ में है।"
रंगनाथ के चेहरे पर अपनी बात का असर पढ़ते हुए उन्होंने फिर कहा, “ऐसा मैनेजर
पूरे मुल्क में न मिलेगा। सीधे के लिए बिलकुल सीधे हैं और हरामी के लिए
खानदानी हरामी।"
रंगनाथ ने यह सूचना चुपचाप हजम कर ली और सिर्फ कुछ कहने की गरज से बोला, “और
कोऑपरेटिव यूनियन के क्या हाल हैं ? मामाजी उसके भी तो कुछ थे।"
“थे नहीं, हैं।" रुप्पन बाबू ने जरा तीखेपन से कहा, “मैनेजिंग डायरेक्टर थे,
हैं, और रहेंगे।"
वैद्यजी थे, हैं और रहेंगे।
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