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उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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मालवीय प्रिंसिपल साहब का मुँह देखता रह गया। क्लर्क ने कहा, “सरकारी बसवाला हिसाब लगाओ मालवीय। एक बस बिगड़ जाती है तो सब सवारियाँ पीछे आनेवाली दूसरी बस में बैठा दी जाती हैं। इन लड़कों को भी वैसे ही अपने दर्जे में ले जाकर बैठा लो।"

उसने बहुत मीठी आवाज में कहा, “पर यह तो नवाँ दर्जा है। मैं वहाँ सातवें को पढ़ा रहा हूँ।"

प्रिंसिपल साहब की गरदन मुड़ गई। समझनेवाले समझ गए कि अब उनके हाथ हाफ़ पैंट की जेबों में चले जाएँगे और वे चीखेंगे। वही हुआ। वे बोले, “मैं सब समझता हूँ। तुम भी खन्ना की तरह बहस करने लगे हो। मैं सातवें और नवें का फ़र्क समझता हूँ । हमका अब प्रिंसिपली करै न सिखाव भैया। जौनु हुकुम है, तौनु चुप्पे कैरी आउट करौ। समझ्यो कि नाही?"

प्रिंसिपल साहब पास के ही गाँव के रहनेवाले थे। दूर-दूर के इलाकों में वे अपने दो गुणों के लिए विख्यात थे। एक तो खर्च का फ़र्जी नक्शा बनाकर कॉलिज के लिए ज्यादा-से-ज्यादा सरकारी पैसा खींचने के लिए, दूसरे गुस्से की चरम दशा में स्थानीय अवधी बोली का इस्तेमाल करने के लिए। जब वे फ़र्जी नक्शा बनाते थे तो बड़ा-से-बड़ा ऑडीटर भी उसमें क़लम न लगा सकता था; जब वे अवधी बोलने लगते थे तो बड़ा-से-बड़ा तर्कशास्त्री भी उनकी बात का जवाब न दे सकता था।

मालवीय सिर झुकाकर वापस चला गया। प्रिंसिपल साहब ने फटे पायजामेवाले लड़के की पीठ पर एक बेंत झाड़कर कहा, “जाओ। उसी दर्जे में जाकर सब लोग चुपचाप बैठो। जरा भी साँस ली तो खाल खींच लूँगा।'

लड़कों के चले जाने पर क्लर्क ने मुस्कराकर कहा, “चलिए, अब खन्ना मास्टर का भी नजारा देख लें।"

खन्ना मास्टर का असली नाम खन्ना था। वैसे ही, जैसे तिलक, पटेल, गाँधी, नेहरू आदि हमारे यहाँ जाति के नहीं, बल्कि व्यक्ति के नाम हैं। इस देश में जाति-प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी-सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने से जाति के पास और कुछ नहीं रह जाता। वह अपने-आप खत्म हो जाती है।

खन्ना मास्टर इतिहास के लेक्चरार थे, पर इस वक्त इंटरमीजिएट के एक दर्जे में अंग्रेजी पढ़ा रहे थे। वे दाँत पीसकर कह रहे थे, “हिन्दी में तो बड़ी-बड़ी प्रेम-कहानियाँ लिखा करते हो पर अंग्रेजी में कोई जवाब देते हुए मुँह घोड़े-जैसा लटक जाता है !"

एक लड़का दर्जे में सिर लटकाए खड़ा था। वैसे तो घी-दूध की कमी और खेल-कूद की तंगी से हर औसत विद्यार्थी मरियल घोड़े-जैसा दिखता है, पर इस लड़के के मुँह की बनावट कुछ ऐसी थी कि बात इसी पर चिपककर रह गई थी। दर्जे के लड़के जोर से हँसे। खन्ना मास्टर ने अंग्रेजी में पूछा, “बोलो, 'मेटाफ़र' का क्या अर्थ है ?"

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