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उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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सनीचर रंगनाथ को पं. राधेलाल का क़िस्सा बड़े ही नाटकीय ढंग से सुना रहा था। तभी उन तीनों नौजवानों में से एक बैठक के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। वह नंगे बदन था। उसके जिस्म पर अखाड़े की मिट्टी लगी हुई थी। लँगोटे की पट्टी कमर से पैरों तक हाथी की सूंड की तरह लटकी हुई थी। उन दिनों शिवपालगंज में लँगोटा पहनकर चलनेवालों में यही फ़ैशन लोकप्रिय हो रहा था। सनीचर ने पूछा, “क्या मामला है छोटे पहलवान ?"

पहलवान ने शरीर के जोड़ों पर दाद खुजलाते हुए कहा, “बद्री भैया आज अखाड़े में नहीं आए ? कहाँ लपक गए ?"
"लपक कहाँ जाएँगे, इधर-उधर कहीं होंगे ?"
"कहाँ होंगे ?"
“यूनियन का सुपरवाइजर गेहूँ लदवाकर भाग गया है। उसी की मीटिंग यूनियन में हो रही है। बद्री भी गए होंगे।"
पहलवान ने लापरवाही से चबूतरे पर थूक दिया। कहा, “बद्री भैया मीटिंग में बैठकर क्या अण्डा देंगे? सुपरवाइजर को पकड़कर एक धोबीपाट मारते, उसी में साला टें हो जाता! मीटिंग-शीटिंग में क्या होगा?"

रंगनाथ को बात पसन्द आ गई। बोला, “क्या तुम्हारे यहाँ मीटिंग में अण्डा दिया जाता है ?"

पहलवान ने इधर से किसी सवाल की आशा न की थी। उसने कहा, “अण्डा नहीं देंगे तो क्या बाल उखाड़ेंगे ? सब मीटिंग में बैठकर राँडों की तरह फाँय-फाँय करते हैं, काम-धाम के वक्त छूटा पकड़कर बैठ जाते हैं।"

रंगनाथ को हिन्दी-भाषा के इस रूप का विशेष ज्ञान न था। उसने मन में सोचा, लोग यों ही कहा करते हैं कि हमारी भाषा में सशक्त शब्दों की कमी है। यदि हिन्दी के विद्वानों को छोटे पहलवान की तरह अखाड़े में चार महीने रखा जाए तो व्यक्तिगत असुविधा के बावजूद वे वहाँ की मिट्टी के जरे-जर्रे से इस तरह के शब्दकोश निकालने लगेंगे। रंगनाथ ने अब छोटे पहलवान को आदर की निगाह से देखा। इत्मीनान से बात करने के मतलब से कहा, “अन्दर आ जाओ पहलवान।"

“बाहर कौन गाज गिर रही है ? हम यहीं चुरेट हैं।" इतना कहकर छोटे पहलवान ने बातचीत में कुछ आत्मीयता दिखायी। पूछा, “तुम्हारे क्या हाल हैं रंगनाथ गुरू ?" रंगनाथ पहलवान से अपने बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहता था। दोनों वक़्त दूध-बादाम पीने और कसरत करने की बात कॉफ़ी-हाउसों में भले ही लोगों की उत्सुकता न जगाये, पर छोटे पहलवान के लिए यह विषय पूरी रात पार करने को काफ़ी था।

रंगनाथ बोला, “हम तो बिलकुल फ़िट हैं पहलवान, अपने हाल बताओ। इस सुपरवाइजर को गेहूँ बेचने की क्या जरूरत पड़ी ?"

पहलवान ने फिर नफ़रत के साथ चबूतरे पर थूका, लँगोट की पट्टी को आगे खींचकर कसा और इस प्रकार असफल चेष्टा से यह शुभेच्छा प्रकट की कि वह नंगा नहीं है। इसके बाद अपने को रंगनाथ की समकक्षता में लाकर बोला, “अरे गुरु, कहा है, 'तन पर नहीं लत्ता, पान खायँ अलवत्ता' वही हाल था। लखनऊ में दिन-रात फुटटफैरी करता था। तो, बिना मसाले के फुटट्फैरी कैसी? गेहूँ तो बेचेगा ही।"

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