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उपन्यास >> राग दरबारी

राग दरबारी

श्रीलाल शुक्ल

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :335
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9648
आईएसबीएन :9788126713967

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“यह फुट्टफैरी क्या चीज है ?"
पहलवान हँसा, “फुट्टफैरी नहीं समझे। वह ससुरा बड़ा लासेबाज था। तो लासेबाजी कोई हँसी-ठट्ठा है ! वड़ों-बड़ों का गूदा निकल आता है। जमुनापुर की रियासत तक इसी में तिड़ी-बिड़ी हो गई।"

देसी विश्वविद्यालयों के लड़के अंग्रेजी फिल्म देखने जाते हैं। अंग्रेजी बातचीत समझ में नहीं आती, फिर भी बेचारे मुस्कराकर दिखाते रहते हैं कि वे सब समझ रहे हैं और फ़िल्म बड़ा मजेदार है। नासमझी के माहौल में रंगनाथ भी उसी तरह मुस्कराता रहा। पहलवान कहता रहा, “गुरू, इस रामसरूप सुपरवाइजर की नक्शेबाजी मैं पहले से देख रहा था। बद्री पहलवान से मैंने तभी कह दिया था कि वस्ताद, यह लखनऊ लासेबाजी की फिराक में जाता है। तब तो बद्री वस्ताद भी कहते रहे कि 'टाँय-टाँय न कर छोटू, साला आग खायेगा तो अंगार हगेगा।' अब वह आग भी खा गया और गेहूँ भी तिड़ी कर ले गया। पहले तो बैद महाराज भी छिपाए बैठे रहे, अब जब पानी का हगा उतरा आया है तो सब यूनियन के दफ्तर में बैठकर फुसर-फुसर कर रहे हैं। सुना है प्रस्ताव पास करेंगे। प्रस्ताव न पास करेंगे, पास करेंगे घण्टा। गल्ला-गोदाम का सब गल्ला तो रामसरूप निकाल ले गया। अब जैसे प्रस्ताव पास करके ये उसका कुछ उखाड़ लेंगे।"

रंगनाथ ने कहा, “बद्री से तुमने बेकार ही बात की। बैदजी से अपना शुबहा बताते तो वह तभी इस सुपरवाइजर को यहाँ से हटवा देते।"

"अरे गुरू, मुँह न खुलवाओ, वैदजी तुम्हारे मामा हैं, पर हमारे कोई बाप नहीं लगते। सच्ची बात ठाँस दूंगा तो कलेजे में कल्लायेगी, हाँ !"

सनीचर ने कहा, “छोटू पहलवान, आज बहुत छानकर चले हो क्या ? बड़ी रंगबाजी झाड़ रहे हो।"

छोटे पहलवान बोले, “रंगबाजी की बात नहीं बेटा, मेरा तो रोआँ-रोआँ सुलग रहा है ! जिस किसी की दुम उठाकर देखो, मादा ही नजर आता है। बैद महाराज के हाल हमसे न कहलाओ। उनका खाता खुल गया तो भम्भक-जैसा निकल आएगा। मूंदना भी मुश्किल हो जाएगा। यही रामसरूप रोज बैदजी के ही मुँह-में-मुँह डालकर तीन-तेरह की बातें करता था और जब दो ठेला गेहूँ लदवाकर रफूचक्कर हो गया तो दो दिन से से टिलटिला रहे हैं। हम भी यूनियन में हैं। कह रहे थे, प्रस्ताव में चलकर हाथ उठा दो। हम बोले कि हमसे हाथ न उठवाओ महाराज; मैं हाथ उठाऊँगा तो लोग काँखने लगेंगे । हाँ ! यही रामसरूप रोज शहर में घसड़-फसड़ करता घूमता है, उसे पकड़वाकर एक-लक्खी इमारत में वन्द कराते नहीं, कहते हैं कि प्रस्ताव कर लो। वद्री वस्ताद खुद बिलबिलाये हुए हैं, पर सगे बापका मामला, यह जाँघ खोलो तो लाज और वह खोलो तो लाज।"

तब तक बैठक के सामने लोगों के आने की आवाजें सुनायी दीं। चबूतरे पर खद्दर की धोती, कुरता, सदरी टोपी और चादर में भव्यमूर्ति वैद्य महाराज प्रकट हुए। उनके पीछे कई और चेले-चपाड़े। वद्री पहलवान सबसे पीछे थे। चेहरा बिना तोवड़े की सहायता के ही तोवड़ा-जैसा हो रहा था। उन्हें देखते ही छोटे ने कहा, “वस्ताद, एक बड़ा फण्टूश मामला है। वड़ी देर से बताने के लिए खड़ा हूँ।"

"खड़े हो तो कौन पिघले जा रहे हो ? क्या मामला है ?" कहकर बद्री पहलवान ने छोटे का स्वागत किया। गुरु-शिष्य चबूतरे के दूसरे छोर पर बातचीत करने के लिए चले गए।

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