विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
बोलने की गलती में बाधक प्रवृत्ति, अर्थ में, वाधित आशय से सम्बन्धित हो सकती
है। इस अवस्था में या तो पहली प्रवृत्ति दूसरी प्रवृत्ति का खण्डन करती है,
या उसे शुद्ध करती है, या उसकी एक पूरक है। अथवा दूसरे अधिक अस्पष्ट और अधिक
मनोरंजक उदाहरणों में यह हो सकता है कि बाधक प्रवृत्ति का, अर्थ में, बाधित
आशय से कुछ भी सम्बन्ध न हो।
इन सम्बन्धों में से पहले का प्रमाण अब तक बताए गए उदाहरणों, और उन जैसे
दूसरे उदाहरणों, में आसानी से मिल सकता है। बोलने की गलती के प्रायः सब
उदाहरणों में, जिनमें असली आशय से उल्टी बात कही जाती है, बाधक प्रवृत्ति
बाधित आशय से उल्टा अर्थ प्रगट करती है, और वह गलती दो असंगत आवेगों के बीच
संघर्ष की सूचना है। 'मैं बैठक के उद्घाटन की घोषणा करता हूं, पर इसे बन्द कर
देना ज़्यादा अच्छा समझता हूं'–अध्यक्ष की गलती का यह अर्थ है। एक राजनैतिक
अखबार जिस पर भ्रष्टाचार का दोष लगाया गया था, एक लेख में अपनी सफाई देता है,
जिसको इन शब्दों से समाप्त किया जाना था, 'हमारे पाठक इस बात का सबत हैं कि
हमने सदा जनहित के लिए अधिक-से-अधिक निःस्वार्थ रीति से मेहनत की है।' पर जिस
सम्पादक को सफाई लिखने का काम सौंपा गया था, उसने लिखा, 'अधिक-से-अधिक
स्वार्थी रीति से।' यह कहा जा सकता है कि वह सोचता है, 'मुझे यह बात लिखनी है
पर मैं असलियत को अच्छी तरह जानता हूं।' जनता के एक प्रतिनिधि को यह कहते हुए
कि हमें कैसर से 'Riick haltslos' (निःसंकोच रूप से) सच्ची बात कह देनी
चाहिए, अपने दुस्साहस पर भय पैदा होता है और एक आंतरिक पकार सनाई देती है. और
वह बोलने की गलतियों से Riick haltslos को बदलकर 'Riick gratslos' (निष्फल
रूप से) बोल सकता है।
ऊपर दिए गए उदाहरणों में, जिनमें शब्द या वाक्य के सिकुड़ जाने और संक्षिप्त
हो जाने का प्रभाव पैदा होता है, शोधन या सही करने, कुछ जोड़ देने या जारी
रहने का प्रक्रम होता है, जिसमें दूसरी प्रवृत्ति पहली के साथ-साथ दिखाई देती
है। 'तब बातें रिवील (अर्थात् प्रकट) हुई, परन्तु सीधे कहा जाए तो फिल्दी
(अर्थात् भद्दी या गन्दी) थी, इसलिए बातें रिफिल्ड [रि(वील)+(फिल्दी)+ड]
हुई।' 'जो लोग इस विषय को समझते हैं, वे एक हाथ की उंगलियों पर गिने जा सकते
हैं, पर नहीं, असल में इस विषय को समझने वाला सिर्फ एक व्यक्ति है, इसलिए ठीक
ही है कि वह एक उंगली पर गिना जा सकता है'; या 'मेरा पति जो कुछ चाहे, खा-पी
सकता है, पर आप जानते हैं कि मैं उसे उसकी मनचाही चीज़ नहीं चाहने देती;
इसलिए वह वही चीजें खा-पी सकता है जो मैं चाहूं।' इन सब अवस्थाओं में गलती
बाधित आशय की वस्तु से पैदा होती है या उससे सीधा सम्बन्ध रखती है।
दो बाधाकारक प्रवृत्तियों में दूसरे प्रकार का सम्बन्ध विचित्र मालूम होता
है। यदि बाधक प्रवृत्ति का बाधित प्रवृत्ति की वस्तु से कोई सम्बन्ध नहीं है,
तो वह कहां से आती है, और यह ठीक उसी स्थान पर क्यों प्रकट होती है?
प्रेक्षण1 से ही इसका उत्तर मिल सकता है, और उससे पता चलता है कि बाधक
प्रवृत्ति उस विचार-श्रृंखला से पैदा होती है जो उस व्यक्ति के मन में कुछ
देर पहले चल रही थी, और वह बाद में इस प्रकार प्रकट हो जाती है, चाहे वह पहले
भाषण में प्रकट हुई हो या न हुई हो।
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1. Observation
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