विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
व्याख्यान
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गलतियों का मनोविज्ञान
यहां तक हमने जो प्रयत्न किए हैं, उनसे यह बात तो निश्चित रूप से सिद्ध हो गई
मानी जा सकती है कि गलतियों का अर्थ होता है, और अपनी आगे की जांच के लिए इस
निष्कर्ष को हम अपना आधार बना सकते हैं। मैं एक बार इस तथ्य पर फिर बल देना
चाहता हूं कि हमारी यह मान्यता नहीं है-"और अपने प्रयोजनों के लिए हमें इस
मान्यता की आवश्यकता भी नहीं-कि जो भी भूल होती है उसका अर्थ होता है,
हालांकि मैं इसे सभ्भाव्य समझता हूं हमारे लिए इतना सिद्ध करना ही काफी है कि
विभिन्न प्रकार की गलतियों में बहुत बार इस तरह का अर्थ होता है। इस सिलसिले
में मैं यह बात बता दूं कि विभिन्न प्रकार की गलतियों में कुछ अन्तर दिखाई
देते हैं। वोलने की, लिखने की, और इसी तरह की अन्य कुछ गलतियां शुद्ध रूप से
कार्यिकीय कारण का परिणाम हो सकती हैं, हालांकि मैं उन गलतियों के बारे में
इस बात को सम्भव नहीं मान सकता जो भुलक्कड़पन (नामों या आशयों का भूल जाना,
चीज़ रखकर भूल जाना आदि) पर निर्भर हैं, यही अधिक सभ्भाव्य है कि कुछ
अवस्थाओं में सामान खो जाने को बिना आशय की घटना माना जाए; कुल मिलाकर हमारे
विचार दैनिक जीवन में होने वाली भूलों पर एक निश्चित सीमा तक ही लागू हो सकते
हैं। जब हम यह मानकर आगे चलते हैं कि गलतियां दो आशयों के आपसी संघर्ष से
पैदा होने वाले मानसिक कार्य हैं, तब आपको इन सीमाओं का मन में ध्यान रखना
चाहिए।
यह हमारे मनोविश्लेषण का पहला परिणाम है। अब तक मनोविज्ञान को ऐसे संघर्षों
का, या इस संभावना का कि वे संघर्ष इस तरह के रूपों में दिखाई दे सकते हैं,
कुछ पता नहीं था। हमने मानसिक घटनाओं के क्षेत्र को बहुत अधिक विस्तृत कर
दिया है, और ऐसी घटनाओं का भी मनोवैज्ञानिक आधार सिद्ध कर दिया है, जिनको
पहले कभी मनोवैज्ञानिक नहीं माना गया।
अब ज़रा देर इस कथन पर विचार कीजिए कि गलतियां 'मानसिक कार्य' हैं। क्या इस
बात का हमारे पहले वाले कथन से-कि उनका कुछ अर्थ होता है-अधिक मतलब है? मैं
ऐसा नहीं समझता; इसके विपरीत, यह अधिक अनिश्चित कथन है, और इसमें गलतफहमी की
अधिक गुंजायश है। मानसिक जीवन में दिखाई देने वाली प्रत्येक चीज़ को
किसी-न-किसी समय एक मानसिक घटना कहा जाएगा, परन्तु यह इस बात पर निर्भर है कि
कोई विशेष मानसिक घटना सीधे रूप से शारीरिक या ऐन्द्रिय या भौतिक कारणों से
पैदा होती है-इस अवस्था में इसकी जांच का काम मनोविज्ञान का नहीं है, अथवा यह
सीधे अन्य मानसिक प्रक्रमों से पैदा हुई है, जिनके पीछे किसी जगह ऐन्द्रिय
कारणों का सिलसिला शुरू होता है। जब हम किसी घटना को मानसिक प्रक्रम कहते
हैं, तब हमारा आशय इस दूसरी अवस्था से ही होता है और इसलिए अपने कथन को इस
रूप में पेश करना अधिक अच्छा होगा। घटना का अर्थ होता है, और अर्थ से हमारा
मतलब है सार्थकता, आशय, प्रवृत्ति और मानसिक कड़ियों की श्रृंखला में एक
स्थान।
घटनाओं का एक और समूह है जिसका गलतियों से बड़ा नज़दीकी सम्बन्ध है, और जिसके
लिए यह नाम उपयुक्त नहीं। हम उन्हें 'आकस्मिक' और लक्षणसूचक कार्य कहते हैं।
वे भी बिना किसी प्रवर्तक या प्रेरक कारण के होने वाले, अर्थहीन, और
महत्त्वहीन कार्य प्रतीत होते हैं, पर इसके साथ-साथ उनमें स्पष्ट रूप से
'अनावश्यक' होने की विशेषता होती है। एक ओर तो वे गलतियों से अलग पहचाने जाते
हैं, क्योंकि उनमें ऐसा कोई दूसरा आशय नहीं होता जिसका वे विरोध करते हों, या
जिसे वे बाधित करते हों; दूसरी ओर, वे उन हाव-भावों और चेष्टाओं में बिना
किसी निश्चित भेदक सीमा के आ जाते हैं, जिन्हें हम भावों की अभिव्यक्तियां
मानते हैं। आकस्मिक घटनाओं के इस वर्ग में ऊपर से निष्प्रयोजन दीखने वाले सब
कार्य आ जाते हैं, जो हम कपड़ों से, शरीर के अंगों से और अपनी पकड़ में आने
वाली वस्तुओं से मानो खेल-खेल में किया करते हैं। ऐसे कार्यों का लोप भी और
वे स्वरलहरियां भी, जो हम आपसे-आप गुनगुनाया करते हैं, इसी के अन्तर्गत आते
हैं। मेरा यह कहना है कि ऐसे सब कार्यों का अर्थ होता है और उनकी उसी तरह
व्याख्या की जा सकती है जैसे गलतियों की, अर्थात् यह कि वे अधिक महत्त्वपूर्ण
मानसिक कार्यों के हलके संकेत हैं, और सही रूप में मानसिक कार्य हैं। पर अब
मैं मानसिक घटनाओं के क्षेत्र के और अधिक विस्तार पर अधिक समय न लगाकर फिर
गलतियों पर आता हूं, क्योंकि उन पर विचार करने से मनोविश्लेषण-विषयक
जांच-पड़ताल की महत्त्वपूर्ण समस्याओं को अधिक स्पष्ट रीति से हल किया जा
सकता है।
गलतियों पर विचार करते हुए हमने जो सबसे अधिक मनोरंजक प्रश्न बनाए थे और
जिनका अब तक उत्तर नहीं दिया गया वे, निःसन्देह, ये हैं, हमने कहा था कि
गलतियां दो भिन्न आदर्शों के आपसी संघर्ष या बाधन' से पैदा होती हैं, जिनमें
से एक को बाधित आशय और दूसरे को बाधक प्रवृत्ति कहा जा सकता है। बाधित आशयों
से कोई और प्रश्न नहीं पैदा होता, पर बाधक प्रवृत्तियों के विषय में हम प्रथम
तो यह जानना चाहते हैं कि दूसरों के बाधक के रूप में पैदा होने वाले ये आशय
किस प्रकार के हैं, और दूसरे, बाधक प्रवृत्तियों और बाधित प्रवृत्तियों में
क्या सम्बन्धमैं सब तरह की गलतियों के प्रतिनिधि के रूप में, फिर, बोलने की
ही गलतियों को लूंगा, और दूसरे प्रश्न का पहले उत्तर दूंगा।
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1. Interference
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