विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
मेडर ने एक ऐसी महिला की कहानी बताई जो विवाह से पहले दिन अपनी विवाह की
पोशाक की ट्राई देना भूल गई थी, जिससे दर्जी बड़ा निराश हुआ था और महिला को
शाम को बहुत देर से इसकी याद आई। उसने इस बात का सम्बन्ध इस तथ्य से जोड़ा है
कि विवाह के कुछ ही समय बाद उसके पति ने उसे तलाक दे दिया। मैं एक ऐसी स्त्री
को जानता हूं जिसका अब तो अपने पति से तलाक हो चुका है, पर जो अपने
रुपये-पैसे के मामले में बहुत बार अपने अविवाहित अवस्था वाले नाम से ही
कागजात पर हस्ताक्षर किया करती थी, यद्यपि उसने इसके बहुत वर्ष बाद अपना
कुमारावस्था का नाम असल में अपनाया। मैं कुछ और ऐसी स्त्रियों को भी जानता
हूं जिनके विवाह की अंगूठियां सुहागरात के दिनों में खो गईं, और यह भी जानता
हूं कि विवाह होने तक की बातें इस घटना के पीछे थीं। अब एक और विशेष उदाहरण
लीजिए, जिसका अन्त सुखद हुआ। एक प्रसिद्ध जर्मन रसायन-शास्त्री के विषय में
कहा जाता है कि उसका विवाह इस कारण कभी न हो सका क्योंकि वह संस्कार का समय
भूल जाता था, और चर्च पहुंचने के बजाय प्रयोगशाला पहुंच जाता था। वह समझदार
था, इसलिए एक बार प्रयत्न करके ही उसने हाथ खींच लिया और बहुत बड़ी उम्र में
अविवाहित ही मरा।
शायद आपके मन में भी यह बात आई है कि इन उदाहरणों में पराने जमाने के शकुनों
या अपशकुनों के स्थान पर भूलें आ गई मालूम होती हैं और सचमुच अपशकुनों के कुछ
प्रकार गलतियों के सिवाय कुछ नहीं थे; जैसे उदाहरण के लिए, जब कोई आदमी ठोकर
खा जाता था या गिर पड़ता था। यह ठीक है कि कुछ शकुन मनुष्य के आत्मनिष्ठ
कार्य होने के बजाय, वस्तुनिष्ठ घटनाओं के रूप वाले होते थे, पर आप विश्वास न
करेंगे कि कभी-कभी यह फैसला करना कितना कठिन होता है कि कोई विशेष उदाहरण
पहले वर्ग में आता है या दूसरे में। प्रायः कार्य यह जानता है कि अपने-आपको
स्वयंभावी या निष्क्रिय अनुभव के रूप में कैसे पेश किया जाए।
हममें से जो लोग अपने जीवन के पिछले काफी लम्बे अनुभव का विचार कर सकते हैं,
उनमें से हरेक सम्भवतः यही कहेगा कि यदि हमें दूसरों के साथ व्यवहार में
दिखाई देने वाली छोटी-छोटी भूलों को अपशकुन समझने का, और उन्हें अन्दर छिपी
हुई प्रवृत्तियों के चिह्न समझने का साहस और संकल्प होता, तो हम बहुत-सी
निराशाओं और कष्टदायक आश्चर्यों से बच गए होते। अधिकतर अवसरों पर मनुष्य को
ऐसा करने का साहस नहीं होता। वह सोचता है कि मैं इस टेढ़े-मेढ़े वैज्ञानिक
रास्ते से फिर अंधविश्वासी हो जाऊंगा; और फिर, सब शकुन सच्चे भी नहीं होते,
और हमारे सिद्धान्तों से आपको पता चलेगा कि उन सबका सच्चा होना किस तरह
ज़रूरी भी नहीं है।
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