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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
संचित और मिली-जुली गलतियां निश्चित ही सबसे बढ़िया किस्म की गलतियां हैं।
यदि हमें सिर्फ इतना ही सिद्ध करना होता कि गलतियों का कुछ अर्थ होता है, तो
हम शुरू में उतने तक ही रहते, क्योंकि उनका कुछ अर्थ होने की बात बुद्ध से
बुद्ध भी समझ सकता है, और बड़े तीव्रबुद्धि आलोचक को भी उसे मानना पड़ता है।
घटनाओं के दोहराए जाने से एक ऐसे आग्रह का पता चलता है जो कभी अकस्मात् या
अचानक नहीं हो सकता, बल्कि जिसके पीछे कोई विचार होने की बात ही जंचती है।
फिर, एक तरह की भूल के स्थान पर दूसरी तरह की भूल होने से हमें यह पता चलता
है कि गलती में सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक तत्त्व क्या है; और वह न तो गलती
का बाह्य रूप है, और न वह साधन है जिसके द्वारा यह प्रकट होता है, बल्कि वह
प्रवृत्ति है जो इसका उपयोग करती है, और बड़े भिन्न-भिन्न तरीकों से अपना
लक्ष्य सिद्ध कर सकती है। इस प्रकार मैं आपको बार-बार भूलने का एक उदाहरण
दूंगा। अर्नेस्ट जोन्स लिखता है, 'मैंने एक बार एक पत्र किसी अज्ञात कारण से
कई दिन तक अपनी मेज़ पर पड़ा रहने दिया। अन्त में मैंने इसे डाक में डालने का
निश्चय किया, पर वह मृतपत्र-कार्यालय से लौटकर आ गया, क्योंकि मैं उस पर पता
लिखना भूल गया था। उस पर पता लिखने के बाद मैं उसे डाक में डालने गया, पर इस
बार टिकट लगाना भूल गया। अब मुझे अपने मन में यह मानना पडा कि असल में मैं उस
पत्र को बिलकल भेजना ही नहीं चाहता था।'
दूसरे उदाहरण में, भूल से कोई चीज़ उठा लेना और उसे कहीं रखकर भूल जाना, ये
दो बातें जुड़ी हुई हैं। एक महिला अपने बहनोई के साथ, जो एक प्रसिद्ध कलाकार
था, रोम गई। कलाकार का रोम में रहने वाले जर्मनों ने बड़ा स्वागत किया, और
उसे भेंट में, और वस्तुओं के साथ, एक पुराना सोने का तमगा भी दिया। उस महिला
को इस बात से बड़ी परेशानी हुई कि उसके बहनोई ने उस बढ़िया चीज़ को बहुत
ज़्यादा पसन्द नहीं किया। अपनी बहिन के आ जाने के बाद वह स्वदेश लौट गई, और
वहां अपना सामान खोलने पर उसने देखा कि वह उस तमगे को अपने साथ ले आई थी;
कैसे ले आई थी, यह उसे पता नहीं था। उसने तुरन्त अपने बहनोई को पत्र लिखा कि
अगले दिन वह उस चुराई हुई वस्तु को वापस भेज देगी पर अगले दिन वह तमगा ऐसी
चतुराई से कहीं रखकर भुला दिया गया कि वह हाथ ही नहीं आ सका, और वापस नहीं
किया जा सका, और तव उस महिला के मन में यह बात आनी शुरू हुई कि उसकी
अन्यमनस्कता, अर्थात् ध्यान कहीं और होने का कुछ अर्थ था, और वह यह था कि वह
उस कलाकृति को अपने ही पास रखना चाहती थी।1
भुलक्कड़पन और गलती के मिल जाने का एक उदाहरण मैं आपको पहले दे चुका हूं,
जिसमें एक आदमी किसी सभा का नियत समय भूल जाता है, और दूसरी बार, जब वह उसे न
भूलने का पक्का इरादा कर लेता है, तब वह नियत समय के बाद पहुंचता है। बिलकुल
इसी तरह का एक उदाहरण मझे एक मित्र ने, जो साहित्यऔर विज्ञान का विद्वान् है,
अपने निजी अनुभव से वताया था। उसने कहा, 'कुछ वर्ष पहले मैंने एक साहित्यिक
समाज की परिषद् के लिए चुना जाना स्वीकार कर लिया, क्योंकि मुझे यह आशा थी कि
किसी समय मेरे लिए वह समाज इस तरह उपयोगी हो सकता है कि वह मेरा नाटक खेलने
का प्रबन्ध कर दे, और बहुत दिलचस्पी न होते हुए भी मैं नियमित रूप से हर
शुक्रवार उसकी बैठक में जाया करता था। कुछ महीने पहले मुझे यह आश्वासन मिल
गया कि मेरा नाटक फ में एक थियेटर में खेला जाएगा और तब से सदा ऐसा हुआ है कि
मैं उस समाज की बैठकों में जाना भूल जाता हूं। जब मैंने इस विषय में आपके लेख
पढ़े, तब मुझे अपनी इस क्षुद्रता पर ग्लानि हुई कि अब इन लोगों को अपने लिए
उपयोगी न जानकर मैंने बैठकों में जाना छोड़ दिया है, और मैंने पक्का निश्चय
कर लिया कि अगले शुक्रवार को मैं किसी भी सूरत में नहीं भूलूंगा। मैं अपने
इरादे को याद करता रहा, और अन्त में मैंने उसे पूरा किया, और मैं सभा-भवन के
दरवाजे पर जा पहुंचा। मैंने आश्चर्य से देखा कि दरवाज़ा बन्द था, और बैठक
पहले खत्म हो चुकी थी। मैंने सप्ताह के दिन के बारे में भूल कर डाली थी, और
उस दिन शनिवार था।'
इस तरह के उदाहरण बहुत-से इकट्ठे किए जा सकते हैं, पर अब मैं आगे चलंगा और
इनके बदले आपको उन उदाहरणों पर विचार करने का मौका दंगा जिनमें अर्थ की
पुष्टि भविष्य में होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
इन उदाहरणों में मुख्य शर्त, जैसी हमें आशा भी करनी चाहिए, यह है कि उस समय
मानसिक स्थिति पता नहीं है, या उसका पता नहीं लगाया जा सकता। इस लिए उस समय
हमारा अर्थ एक कल्पना-मात्र है, जिसे हम स्वयं भी बहुत अधिक महत्त्व नहीं
देंगे; परन्तु बाद में कोई ऐसी बात हो जाती है जिससे हमें पता चलता है कि
हमने जो अर्थ पहले समझा था, वह कितना उचित था। एक बार मैं एक तरुण विवाहित
दम्पती का अतिथि बना। तरुण पत्नी ने हंसते हुए अपना हाल का यह अनुभव सुनाया
कि सुहागरात या हनीमून से लौटने के अगले दिन मैंने अपनी बहिन को बुलाया था,
और पहले की तरह उसके साथ सामान खरीदने बाज़ार गई थी, और मेरा पति अपने कारबार
के लिए चला गया था। एकाएक मैंने सड़क के दूसरी ओर एक आदमी देखा और अपनी बहिन
को दिखाते हुए कहा, 'देखो, वे क महाशय जा रहे हैं।' वह भूल गई थी कि यह आदमी
कुछ सप्ताह पहले उसका पति बन चुका था। यह किस्सा सुनकर मैं कांप गया, पर मुझे
भीतरी बात का अनुमान करने का साहस न हुआ। कई वर्ष बाद वह छोटी-सी घटना फिर
मेरे मन में उस समय आई जब उस विवाह का बहुत दुःखद अन्त हो चुका था।
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1. R. Reitler से
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